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तं त्वा॑ व॒यं वि॑श्ववा॒रा शा॑स्महे पुरुहूत। सखे॑ वसो जरि॒तृभ्यः॑॥

English Transliteration

taṁ tvā vayaṁ viśvavārā śāsmahe puruhūta | sakhe vaso jaritṛbhyaḥ ||

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Pad Path

तम्। त्वा॒। व॒यम्। वि॒श्व॒ऽवा॒र॒। आ। शा॒स्म॒हे॒। पु॒रु॒ऽहू॒त॒। सखे॑। व॒सो॒ इति॑। ज॒रि॒तृऽभ्यः॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:30» Mantra:10 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:29» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब ईश्वर की प्रार्थना के विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

Word-Meaning: - हे (विश्ववार) संसार को अनेक प्रकार सिद्ध करने (पुरुहूत) सब से स्तुति को प्राप्त होने (वसो) सब में रहने वा सबको अपने में बसानेवाले (सखे) सबके मित्र जगदीश्वर ! (तम्) पूर्वोक्त (त्वा) आपकी (वयम्) हम लोग (जरितृभ्यः) स्तुति करनेवाले धार्मिक विद्वानों से (आ) सब प्रकार से (शास्महे) आशा करते हैं अर्थात् आपके विशेष ज्ञान प्रकाश की इच्छा करते हैं॥१०॥
Connotation: - मनुष्यों को विद्वानों के समागम ही से सब जगत् के रचने, सबके पूजने योग्य, सबके मित्र, सबके आधार, पिछले मन्त्र से प्रतिपादित किये हुए परमेश्वर के विज्ञान वा उपासना की नित्य इच्छा करनी चाहिये, क्योंकि विद्वानों के उपदेश के विना किसी को यथायोग्य विशेष ज्ञान नहीं हो सकता है॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथोक्तस्येश्वरस्य प्रार्थनाविषय उपदिश्यते॥

Anvay:

हे विश्ववार पुरुहूत वसो सखे जगदीश्वर ! पूर्वप्रतिपादितं त्वां वयं जरितृभ्य आशास्महे भवद्विज्ञानप्रकाशमिच्छाम इति यावत्॥१०॥

Word-Meaning: - (तम्) पूर्वोक्तं परमेश्वरम् (त्वा) त्वाम् (यम्) उपासनामभीप्सवः (विश्ववार) विश्वं वृणीते सम्भाजयति तत्सम्बुद्धौ (आ) समन्तात् (शास्महे) इच्छामः (पुरुहूत) पुरुभिर्बहुभिराहूयते स्तूयते यस्तत् सम्बुद्धौ (सखे) मित्र (वसो) वसन्ति सर्वाणि भूतानि यस्मिन् यो वा सर्वेषु भूतेषु वसति तत्सम्बुद्धौ (जरितृभ्यः) स्तावकेभ्यो धार्मिकेभ्यो विद्वद्भ्यो मनुष्येभ्यः॥१०॥
Connotation: - मनुष्यैर्विदुषां सङ्गमेनैवास्य सर्वरचकस्य सर्वपूज्यस्य सर्वमित्रस्य सर्वाधारस्य पूर्वमन्त्रप्रतिपादितस्य परमेश्वरस्य विज्ञानमुपासनं नित्यमन्वेष्टव्यम्, कुतो नैव विदुषामुपदेशेन विना कस्यापि यथार्थतया विज्ञानं भवितुमर्हति॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी विद्वानांच्या सहवासानेच सर्व जगाचा निर्माता, सर्वांचा पूजनीय, सर्वांचा मित्र, सर्वाधार, मागच्या मंत्रात प्रतिपादित केलेल्या परमेश्वराचे विज्ञान व उपासनेची सदैव इच्छा धरावी. कारण विद्वानांच्या उपदेशाशिवाय कुणालाही यथार्थ ज्ञान होऊ शकत नाही. ॥ १० ॥