Go To Mantra

इन्द्रा या॑हि॒ तूतु॑जान॒ उप॒ ब्रह्मा॑णि हरिवः। सु॒ते द॑धिष्व न॒श्चनः॑॥

English Transliteration

indrā yāhi tūtujāna upa brahmāṇi harivaḥ | sute dadhiṣva naś canaḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

इन्द्र॑। आ। या॒हि॒। तूतु॑जानः। उप॑। ब्रह्मा॑णि। ह॒रि॒ऽवः॒। सु॒ते। द॒धि॒ष्व॒। नः॒। चनः॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:3» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:5» Mantra:6 | Mandal:1» Anuvak:1» Mantra:6


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

ईश्वर ने अगले मन्त्र में भौतिक वायु का उपदेश किया है-

Word-Meaning: - (हरिवः) जो वेगादिगुणयुक्त (तूतुजानः) शीघ्र चलनेवाला (इन्द्र) भौतिक वायु है, वह (सुते) प्रत्यक्ष उत्पन्न वाणी के व्यवहार में हमारे लिये (ब्रह्माणि) वेद के स्तोत्रों को (आयाहि) अच्छी प्रकार प्राप्त करता है, तथा वह (नः) हम लोगों के (चनः) अन्नादि व्यवहार को (दधिष्व) धारण करता है ॥६॥
Connotation: - जो शरीरस्थ प्राण है, वह सब क्रिया का निमित्त होकर खाना पीना पकाना ग्रहण करना और त्यागना आदि क्रियाओं से कर्म का कराने तथा शरीर में रुधिर आदि धातुओं के विभागों को जगह-जगह में पहुँचानेवाला है, क्योंकि वही शरीर आदि की पुष्टि वृद्धि और नाश का हेतु है ॥६॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेन्द्रशब्देन वायुरुपदिश्यते।

Anvay:

यो हरिवो वेगवान् तूतुजान इन्द्रो वायुः सुते ब्रह्माण्युपायाहि समन्तात् प्राप्नोति स एव चनो दधिष्व दधते ॥६॥

Word-Meaning: - (इन्द्र) अयं वायुः। विश्वे॑भिः सो॒म्यं मध्वग्न॒ इन्द्रे॑ण वा॒युना॑। (ऋ०१.१४.१०) अनेन प्रमाणेनेन्द्रशब्देन वायुर्गृह्यते। (आ) समन्तात् (याहि) याति समन्तात् प्रापयति (तूतुजानः) त्वरमाणः। तूतुजान इति क्षिप्रनामसु पठितम्। (निघं०२.१५) (उप) सामीप्यम् (ब्रह्माणि) वेदस्थानि स्तोत्राणि (हरिवः) वेगाद्यश्ववान्। हरयो हरणनिमित्ताः प्रशस्ताः किरणा विद्यन्ते यस्य सः। अत्र प्रशंसायां मतुप्। मतुवसो रुः सम्बुद्धौ छन्दसीत्यनेन रुत्वविसर्जनीयौ। छन्दसीरः इत्यनेन वत्वम्। हरी इन्द्रस्य। (निघं०१.१५) (सुते) आभिमुख्यतयोत्पन्ने वाग्व्यवहारे (दधिष्व) दधते (नः) अस्मभ्यमस्माकं वा (चनः) अन्नभोजनादिव्यवहारम् ॥६॥
Connotation: - मनुष्यैरयं वायुः शरीरस्थः प्राणः सर्वचेष्टानिमित्तोऽन्नपानादानयाचनविसर्जनधातुविभागाभिसरणहेतुर्भूत्वा पुष्टिवृद्धिक्षयकरोऽस्तीति बोध्यम् ॥६॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - शरीरातील प्राण सर्व क्रियांचे निमित्त असून खाणे, पिणे, स्वयंपाक करणे व विसर्जन इत्यादी क्रियांनी कर्म करविणारा व शरीरातील रक्त इत्यादी धातूंच्या विभागांना ठिकठिकाणी पोहोचविणारा असतो (हे कार्य तो करतो. ) तोच शरीर इत्यादींची पुष्टी व नाशाचा हेतू आहे. ॥ ६ ॥