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स॒सन्तु॒ त्या अरा॑तयो॒ बोध॑न्तु शूर रा॒तयः॑। आ तू न॑ इन्द्र शंसय॒ गोष्वश्वे॑षु शु॒भ्रिषु॑ स॒हस्रे॑षु तुवीमघ॥

English Transliteration

sasantu tyā arātayo bodhantu śūra rātayaḥ | ā tū na indra śaṁsaya goṣv aśveṣu śubhriṣu sahasreṣu tuvīmagha ||

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Pad Path

स॒सन्तु॑। त्याः। अरा॑तयः। बोध॑न्तु। शू॒र॒। रा॒तयः॑। आ। तु। नः॒। इ॒न्द्र॒। शं॒स॒य॒। गोषु॑। अश्वे॑षु। शु॒भ्रिषु॑। स॒हस्रे॑षु। तु॒वी॒ऽम॒घ॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:29» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:27» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यों को कैसे वीरों को ग्रहण करके शत्रु-निवारण करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

Word-Meaning: - हे (तुविमघ) विद्या सुवर्ण सेना आदि धनयुक्त (शूर) शत्रुओं के बल को नष्ट करनेवाले सेनापति ! आप के (अरातयः) जो दान आदि धर्म से रहित शत्रुजन हैं, वे (ससन्तु) सो जावें और जो (रातयः) दान आदि धर्म के कर्त्ता हैं (त्याः) वे (बोधन्तु) जाग्रत् होकर शत्रु और मित्रों को जानें (तु) फिर हे (इन्द्र) अत्युत्तम ऐश्वर्ययुक्त सभाध्यक्ष सेनापते वीरपुरुष ! तू (सहस्रेषु) हजारह (शुभ्रिषु) अच्छे-अच्छे गुणवाले (गोषु) गौ वा (अश्वेषु) घोड़े हाथी सुवर्ण आदि धनों में (नः) हम लोगों को (आशंसय) शत्रुओं के विजय से प्रशंसावाले करो॥४॥
Connotation: - हम लोगों को अपनी सेना में शूर ही मनुष्य रखकर आनन्दित करने चाहिये, जिससे भय के मारे दुष्ट और शत्रुजन जैसे निद्रा में शान्त होते हैं, वैसे सर्वदा हों, जिससे हम लोग निष्कण्टक अर्थात् बेखटके चक्रवर्त्ति राज्य का सेवन नित्य करें॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैः कीदृशान् वीरान् सङ्गृह्य शत्रवो निवारणीया इत्युपदिश्यते॥

Anvay:

हे तुवीमघ शूर सेनापते ! तवारातयः ससन्तु ये रातयश्च ते सर्वे बोधन्तु तु पुनः हे इन्द्र वीरपुरुष ! त्वं सहस्रेषु शुभ्रिषु गोष्वश्वेषु नोऽस्मानाशंसय॥४॥

Word-Meaning: - (ससन्तु) निद्रां प्राप्नुवन्तु (त्याः) वक्ष्यमाणाः (अरातयः) अविद्यमानारातिर्दानं येषां शत्रूणां ते (बोधन्तु) जानन्तु (शूर) शृणाति हिनस्ति शत्रुबलान्याक्रमति। अत्र ‘शॄ हिंसायाम्’ इत्यस्माद् बाहुलकाड्डूरन्प्रत्ययः। (रातयः) दातारः (आ) समन्तात् (तु) पुनरर्थे। ऋचि तुनु० इति दीर्घः। (नः) अस्मान् (इन्द्र) उत्कृष्टैश्वर्य्यसभाध्यक्ष सेनापते (शंसय) शत्रूणां विजयेन प्रशंसायुक्तान् कुरु (गोषु) सूर्य्यादिषु (अश्वेषु) (शुभ्रिषु) (सहस्रेषु) उक्तार्थेषु (तुविमघ) अस्यार्थसाधुत्वे पूर्ववत्॥४॥
Connotation: - अस्माभिः स्वसेनासु शूरा मनुष्या रक्षित्वा हर्षणीया येषां भयाद् दुष्टाः शत्रवः शयीरन् कदाचिन्मा जाग्रतु, येन वयं निष्कण्टकं चक्रवर्त्तिराज्यं नित्यं सेवेमहीति॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - आम्ही आपल्या सेनेत शूर माणसेच बाळगली पाहिजेत व त्यांना आनंदी ठेवले पाहिजे. ज्यामुळे भयाने दुष्ट व शत्रूलोक जसे निद्रेत शांत असतात तसेच जागृतावस्थेतही असावेत. त्यासाठी आम्हीही सदैव निष्कंटक चक्रवर्ती राज्याचे सेवन करावे. ॥ ४ ॥