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उ॒त स्म॑ ते वनस्पते॒ वातो॒ विवा॒त्यग्र॒मित्। अथो॒ इन्द्रा॑य॒ पात॑वे सु॒नु सोम॑मुलूखल॥

English Transliteration

uta sma te vanaspate vāto vi vāty agram it | atho indrāya pātave sunu somam ulūkhala ||

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Pad Path

उ॒त। स्म॒। ते॒। व॒न॒स्प॒ते॒। वातः॑। वि। वा॒ति॒। अग्र॑म्। इत्। अथो॒ इति॑। इन्द्रा॑य। पात॑वे। सु॒नु। सोम॑म्। उ॒लू॒ख॒ल॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:28» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:26» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह किसलिये ग्रहण करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! जैसे (वातः) वायु (इत्) ही (वनस्पते) वृक्ष आदि पदार्थों के (अग्रम्) ऊपरले भाग को (उत) भी (वि वाति) अच्छे प्रकार पहुँचाता (स्म) पहुँचा वा पहुँचेगा (अथो) इसके अनन्तर (इन्द्राय) प्राणियों के लिये (सोमम्) सब ओषधियों के सार को (पातवे) पान करने को सिद्ध करता है, वैसे (उलूखल) उखरी में यव आदि ओषधियों के समुदाय के सार को (सुनु) सिद्ध कर॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जब पवन सब वनस्पति ओषधियों को अपने वेग से स्पर्श कर बढ़ाता है, तभी प्राणी उनको उलूखल में स्थापन करके उनका सार ले सकते और रस भी पीते हैं। इस वायु के विना किसी पदार्थ की वृद्धि वा पुष्टि होने का सम्भव नहीं हो सकता है॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तत्किमर्थं ग्राह्यमित्युपदिश्यते।

Anvay:

हे विद्वन् ! यथा वात इत्तस्यास्य वनस्पतेरग्रमुत विवाति स्माथो इत्यनन्तरमिन्द्राय जीवाय सोमं पातवे पातुं सुनोति निष्पादयति तथोलूखलेन यवाद्यमोषधिसमुदायं सुनु॥६॥

Word-Meaning: - (उत) अपि (स्म) अतीतार्थे क्रियायोगे (ते) तस्य (वनस्पते) वृक्षादेः (वातः) वायुः (वि) विविधार्थे क्रियायोगे (वाति) गच्छति (अग्रम्) उपरिभागम् (इत्) एव (अथो) अनन्तरे (इन्द्राय) जीवाय (पातवे) पातुं पानं कर्त्तुम्। अत्र तुमर्थे सेसेनसे० इति तवेन्प्रत्ययः। (सुनु) सेधय (सोमम्) सर्वौषधं सारम् (उलूखल) उलूखलेन बहुकार्यकरेण साधनेन। अत्र सुपां सुलुग्० इति तृतीयैकवचनस्य लुक्॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदा पवनेन सर्वे वनस्पत्योषध्यादयो वर्ध्यन्ते, तदैव प्राणिनस्तेषां पुष्टानामुलूखले स्थापनं कृत्वा सारं गृहीत्वा भुञ्जते, रसमपि पिबन्ति, नैतेन विना कस्यचित्पदार्थस्य वृद्धिपुष्टी सम्भवतः॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जेव्हा वायू सर्व वनस्पती व औषधींना आपल्या वेगाने करून वाढवितो. तेव्हा माणसे त्यांना उखळात घालून त्यांचे सार काढून घेतात व रसही पितात. या वायूशिवाय कोणत्याही पदार्थाची वृद्धी व पुष्टी होण्याची शक्यता नसते. ॥ ६ ॥