Go To Mantra

यत्र॒ मन्थां॑ विब॒ध्नते॑ र॒श्मीन्यमि॑त॒वाइ॑व। उ॒लूख॑लसुताना॒मवेद्वि॑न्द्र जल्गुलः॥

English Transliteration

yatra manthāṁ vibadhnate raśmīn yamitavā iva | ulūkhalasutānām aved v indra jalgulaḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

यत्र॑। मन्था॑म्। वि॒ऽब॒ध्नते॑। र॒श्मीन्। यमि॑त॒वैऽइ॑व। उ॒लूख॑लऽसुतानाम्। अव॑। इत्। ऊँ॒ इति॑। इ॒न्द्र॒। ज॒ल्गु॒लः॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:28» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:25» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:4


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

इसके सम्बन्धी और भी साधन का अगले मन्त्र में उपदेश किया है॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) सुख की इच्छा करनेवाले विद्वान् मनुष्य ! तू (रश्मीन्) (इव) जैसे (यमितवै) सूर्य्य अपनी किरणों को वा सारथी जैसे घोड़े आदि पशुओं की रस्सियों को (यत्र) जिस क्रिया से सिद्ध होनेवाले व्यवहार में (मन्थाम्) घृत आदि पदार्थों के निकालने के लिये मन्थनियों को (विबध्नते) अच्छे प्रकार बाँधते हैं, वहाँ (उलूखलसुतानाम्) उलूखल से सिद्ध हुए पदार्थों को (अव) वैसे ही सिद्ध करने की इच्छा कर (उ) और (इत्) उसी विद्या को (जल्गुलः) युक्ति के साथ उपदेश कर॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। ईश्वर उपदेश करता है कि हे विद्वानो ! जैसे सूर्य्य अपनी किरणों के साथ भूमि को आकर्षण शक्ति से बाँधता और जैसे सारथी रश्मियों से घोड़ों को नियम में रखता है, वैसे ही मथने बाँधने और चलाने की विद्या से दूध आदि वा औषधि आदि पदार्थों से मक्खन आदि पदार्थों को युक्ति के साथ सिद्ध करो॥४॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

एतत्सम्बन्ध्यन्यदपि साधनमुपदिश्यते॥

Anvay:

हे इन्द्र ! सुखाभिलाषिन् विद्वंस्त्वं रश्मीन् यमितवै सूर्यो वा सारथिरिव यत्र मन्थां विबध्नते, तत्रोलूखलसुतानां प्राप्तिमवेच्छ। एतामिदु विद्यां युक्त्या जल्गुलः शब्दयोपदिश॥४॥

Word-Meaning: - (यत्र) यस्मिन् क्रियासाध्ये व्यवहारे (मन्थाम्) घृतादिनिस्सारणं मन्थानम्। अत्र छान्दसो वर्णलोपो वा इति नकारलोपः। (विबध्नते) विशिष्टतया बध्नन्ति। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (रश्मीन्) रज्जूः (यमितवा इव) निग्रहीतुमर्ह इव। अत्र यम धातोस्तवै प्रत्ययः। वा छन्दसि सर्वे विधयो भवन्ति इति इडागमः। (उलूखलसुतानाम्) उलूखलेन सम्पादितानां प्राप्तिम्। उलूखलशब्दार्थं यास्कमुनिरेवं समाचष्टे। उलूखलमुरुकरं वोर्ध्वखं वोर्क्करं वा। उरु मे कुर्वित्यब्रवीत् तदुलूखलमभवत्। उरुकरं वै तदुलूखलमित्याचक्षते (निरु०९.२०)। (अव) इच्छ (इत्) निश्चये (उ) वितर्के (इन्द्र) रसाभिसिञ्चन् जीव (जल्गुलः) शब्दय। सिद्धिः पूर्ववत्॥४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। ईश्वर उपदिशति हे विद्वांसो ! यथा सूर्यो रश्मिभिर्भूमिमाकर्षणेन बध्नाति यथा सारथी रज्जुभिरश्वान् नियच्छति, तथैव मन्थनबन्धनचालनविद्यया दुग्धादिभ्य ओषधिभ्यश्च नवनीतादिसारान् युक्त्या निष्पादयतेति॥४॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. ईश्वर उपदेश करतो की, हे विद्वानांनो! जसा सूर्य भूमीला आपल्या किरणाच्या आकर्षणशक्तीने बांधून ठेवतो, जसा सारथी घोड्यांना दोरीने बांधतो तसेच घुसळणे, बांधणे, चलायमान करणे इत्यादी विद्यांनी दूध, औषधी, लोणी इत्यादी पदार्थांना युक्तीने सिद्ध करा. ॥ ४ ॥