वि॒भ॒क्तासि॑ चित्रभानो॒ सिन्धो॑रू॒र्मा उ॑पा॒क आ। स॒द्यो दा॒शुषे॑ क्षरसि॥
vibhaktāsi citrabhāno sindhor ūrmā upāka ā | sadyo dāśuṣe kṣarasi ||
वि॒ऽभ॒क्ता। अ॒सि॒। चि॒त्र॒भा॒नो॒ इति॑ चित्रऽभानो। सिन्धोः॑। ऊ॒र्मौ। उ॒पा॒के। आ। स॒द्यः। दा॒शुषे॑। क्ष॒र॒सि॒॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते॥
यथा हे चित्रभानो विविधविद्यायुक्त विद्वँस्त्वं सिन्धोरूर्मौ जलकणविभाग इव सर्वेषां पदार्थानां विद्यानां विभक्तासि, दाशुष उपाके सत्योपदेशेन बोधान् सद्य आक्षरसि समन्ताद्वर्षसि तथा त्वं भाग्यशाली विद्वानस्माभिः सत्कर्त्तव्योऽसि॥६॥
MATA SAVITA JOSHI
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