स नो॑ दू॒राच्चा॒साच्च॒ नि मर्त्या॑दघा॒योः। पा॒हि सद॒मिद्वि॒श्वायुः॑॥
sa no dūrāc cāsāc ca ni martyād aghāyoḥ | pāhi sadam id viśvāyuḥ ||
सः। नः॒। दू॒रात्। च॒। आ॒सात्। च॒। नि। मर्त्या॑त्। अ॒घ॒ऽयोः। पा॒हि। सद॑म्। इत्। वि॒श्वऽआ॑युः॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते।
स विश्वायुरघायोः शत्रोर्मर्त्त्याद् दूरादासाच्च नोऽस्मानस्माकं सदं च निपाहि सततं रक्षति॥३॥
MATA SAVITA JOSHI
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