आ हि ष्मा॑ सू॒नवे॑ पि॒तापिर्यज॑त्या॒पये॑। सखा॒ सख्ये॒ वरे॑ण्यः॥
ā hi ṣmā sūnave pitāpir yajaty āpaye | sakhā sakhye vareṇyaḥ ||
आ। हि। स्म॒। सू॒नवे॑। पि॒ता। आ॒पिः। यज॑ति। आ॒पये॑। सखा॑। सख्ये॑। वरे॑ण्यः॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वह किस प्रकार का है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते।
हे मनुष्या ! यथा पिता सूनवे सखा सख्य आपिरापय आयजति, तथैवान्योऽयं सम्प्रीत्या कार्याणि संसाध्य हि ष्म सर्वोपकाराय यूयं सङ्गच्छध्वम्॥३॥
MATA SAVITA JOSHI
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