उदु॑त्त॒मं मु॑मुग्धि नो॒ वि पाशं॑ मध्य॒मं चृ॑त। अवा॑ध॒मानि॑ जी॒वसे॑॥
ud uttamam mumugdhi no vi pāśam madhyamaṁ cṛta | avādhamāni jīvase ||
उत्। उ॒त्ऽत॒मम्। मु॒मु॒ग्धि॒। नः॒। वि। पाश॑म्। म॒ध्य॒मञ् चृ॒त॒। अव॑। अ॒ध॒मानि॑। जी॒वसे॑॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वह परमेश्वर कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते।
हे वरुणाविद्यान्धकारविदारकेश्वर ! त्वं करुणया नोऽस्माकं जीवस उत्तमं मध्यमं पाशमुन्मुमुग्ध्यधमानि बन्धनानि च व्यवचृत॥२१॥
MATA SAVITA JOSHI
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