सं नु वो॑चावहै॒ पुन॒र्यतो॑ मे॒ मध्वाभृ॑तम्। होते॑व॒ क्षद॑से प्रि॒यम्॥
saṁ nu vocāvahai punar yato me madhv ābhṛtam | hoteva kṣadase priyam ||
सम्। नु। वो॒चा॒व॒है॒। पुनः॑। यतः॑। मे॒। मधु॑। आऽभृ॑तम्। होता॑ऽइव। क्षद॑से। प्रि॒यम्॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
मनुष्यों को यथायोग्य विद्या किस प्रकार प्राप्त होनी चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
मनुष्यैर्यथायोग्या विद्या कथं प्राप्तव्या इत्युपदिश्यते।
यत आवामुपदेशोपदेष्टारौ होतेवानुक्षदस आभृतं यजमानप्रियं मधुमधुरगुणविशिष्टं विज्ञानं संवोचावहै, यतो मे मम तव च विद्यावृद्धिर्भवेत्॥१७॥
MATA SAVITA JOSHI
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