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परा॑ मे यन्ति धी॒तयो॒ गावो॒ न गव्यू॑ती॒रनु॑। इ॒च्छन्ती॑रुरु॒चक्ष॑सम्॥

English Transliteration

parā me yanti dhītayo gāvo na gavyūtīr anu | icchantīr urucakṣasam ||

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Pad Path

पराः॑। मे॒। य॒न्ति॒। धी॒तयः। गावः॑। न। गव्यू॑तीः। अनु॑। इ॒च्छन्तीः॑। उ॒रु॒ऽचक्ष॑सम्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:25» Mantra:16 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:19» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:16


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

Word-Meaning: - जैसे (गव्यूतीः) अपने स्थानों को (इच्छन्तीः) जाने की इच्छा करती हुई (गावः) गो आदि पशु जाति के (न) समान (मे) मेरी (धीतयः) कर्म की वृत्तियाँ (उरुचक्षसम्) बहुत विज्ञानवाले मुझ को (परायन्ति) अच्छे प्रकार प्राप्त होती हैं, वैसे सब कर्त्ताओं को अपने-अपने किये हुए कर्म प्राप्त होते ही हैं, ऐसा जानना योग्य है॥१६॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्यों को ऐसा निश्चय करना चाहिये कि जैसे गौ आदि पशु अपने-अपने वेग के अनुसार दौड़ते हुए चाहे हुए स्थान को पहुँच कर थक जाते हैं, वैसे ही मनुष्य अपनी-अपनी बुद्धि बल के अनुसार परमेश्वर वायु और सूर्य्य आदि पदार्थों के गुणों को जानकर थक जाते हैं। किसी मनुष्य की बुद्धि वा शरीर का वेग ऐसा नहीं हो सकता कि जिस का अन्त न हो सके, जैसे पक्षी अपने-अपने बल के अनुसार आकाश को जाते हुए आकाश का पार कोई भी नहीं पाता, इसी प्रकार कोई मनुष्य विद्या विषय के अन्त को प्राप्त होने को समर्थ नहीं हो सकता है॥१६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते।

Anvay:

यथा गव्यूतीरन्विच्छन्त्यो गावो न इव मे ममेमा धीयत उरुचक्षसं मां परायन्ति तथा सर्वान् कर्त्तॄन् प्रति स्वानि स्वानि कर्माणि प्राप्नुवन्त्येवेति विज्ञेयम्॥१६॥

Word-Meaning: - (परा) प्रकृष्टार्थे (मे) मम (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (धीतयः) दधात्यर्थान् याभिः कर्मवृत्तिभिस्ताः (गावः) पशुजातयः (न) इव (गव्यूतीः) गवां यूतयः स्थानानि। गोर्यूतौ छन्दस्युपसंख्यानम्। (अष्टा०वा०६.१.७९) (अनु) अनुगमार्थे (इच्छन्तीः) इच्छन्त्यः। अत्र सुपां सुलुग्० इति पूर्वसवर्णः। (उरुचक्षसम्) उरुषु बहुषु चक्षो विज्ञानं प्रकाशनं वा यस्य तं कर्मकर्त्तारं जीवं माम्॥१६॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्यैरेवं निश्चतेव्यं यथा गावः स्व-स्ववेगानुसारेण धावन्त्योऽभीष्टं स्थानं गत्वा परिश्रान्ता भवन्ति, तथैव मनुष्याः स्व-स्वबुद्धिबलानुसारेण परमेश्वरस्य सूर्यादेर्वा गुणानन्विष्य यथाबुद्धि विदित्वा परिश्रान्ता भवन्ति, नैव कस्यापि जनस्य बुद्धिशरीरवेगोऽपरिमितो भवितुमर्हति। यथा पक्षिणः स्व-स्वबलानुसारेणाकाशं गच्छन्तो नैतस्यान्तं कश्चिदपि प्राप्नोति, तथैव कश्चिदपि मनुष्यो विद्याविषयस्यान्तं गन्तुं नार्हति॥१६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांनी असा निश्चय केला पाहिजे, की जशा गायी इत्यादी पशू आपापल्या वेगानुसार धावतात व इच्छित स्थानी पोहोचून परिश्रांत होतात, तशीच माणसे आपल्या बुद्धिबळानुसार परमेश्वर, वायू व सूर्य इत्यादी पदार्थांच्या गुणांना जाणून परिश्रांत होतात. एखाद्या माणसाची बुद्धी किंवा शरीराचा वेग असा असू शकत नाही, की ज्याचा अंत होणार नाही. जसा पक्षी आपापल्या बलानुसार आकाशात उडताना आकाशाच्या पलीकडे जाऊ शकत नाही, त्याचप्रकारे कोणताही माणूस विद्येचा अंत जाणण्यास समर्थ होऊ शकत नाही. ॥ १६ ॥