श॒तं ते॑ राजन्भि॒षजः॑ स॒हस्र॑मु॒र्वी ग॑भी॒रा सु॑म॒तिष्टे॑ अस्तु। बाध॑स्व दू॒रे निर्ऋ॑तिं परा॒चैः कृ॒तं चि॒देनः॒ प्र मु॑मुग्ध्य॒स्मत्॥
śataṁ te rājan bhiṣajaḥ sahasram urvī gabhīrā sumatiṣ ṭe astu | bādhasva dūre nirṛtim parācaiḥ kṛtaṁ cid enaḥ pra mumugdhy asmat ||
श॒तम्। ते॒। रा॒ज॒न्। भि॒षजः॑। स॒हस्र॑म्। उ॒र्वी। ग॒भी॒रा। सु॒ऽम॒तिः। ते॒। अ॒स्तु॒। बाध॑स्व। दू॒रे। निःऽऋ॑तिम्। परा॒चैः। कृ॒तम्। चि॒त्। एनः॒। प्र। मु॒मु॒ग्धि॒। अ॒स्मत्॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब जो राजा और प्रजा के मनुष्य हैं, वे किस प्रकार के हों, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ यौ राजप्रजापुरुषौ स्तस्तौ कीदृशौ भवेतामित्युपदिश्यते।
हे राजन् प्रजाजन वा ! यस्य भिषजस्ते तव शतमौषधानि सहस्रसंख्याता गम्भीरोर्वी भूमिरस्ति, तां त्वं सुमतिर्भूत्वा निर्ऋतिं भूमिं रक्ष, दुष्टस्वभावं प्राणिनं दुष्कर्मणः प्रमुमुग्धि, यत्पराचैः कृतमेनोऽस्ति तदस्मद्दूरे रक्षैतान् पराचो दुष्टान् स्वस्वकर्मानुसारफलदानेन बाधस्वास्मान् शत्रुचोरदस्युभयाख्यात् पापात् प्रमुमुग्धि सम्यग् विमोचय॥९॥
MATA SAVITA JOSHI
N/A