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अव॑ ते॒ हेळो॑ वरुण॒ नमो॑भि॒रव॑ य॒ज्ञेभि॑रीमहे ह॒विर्भिः॑। क्षय॑न्न॒स्मभ्य॑मसुर प्रचेता॒ राज॒न्नेनां॑सि शिश्रथः कृ॒तानि॑॥

English Transliteration

ava te heḻo varuṇa namobhir ava yajñebhir īmahe havirbhiḥ | kṣayann asmabhyam asura pracetā rājann enāṁsi śiśrathaḥ kṛtāni ||

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Pad Path

अव॑। ते॒। हेळः॑। व॒रु॒ण॒। नमः॑ऽभिः। अव॑। य॒ज्ञेभिः॑। ई॒म॒हे॒। ह॒विःऽभिः॑। क्षय॑न्। अ॒स्मभ्य॑म्। अ॒सु॒र॒। प्र॒चे॒त॒ इति॑ प्रऽचेतः। राज॑न्। एनां॑सि। शि॒श्र॒थः॒। कृ॒तानि॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:24» Mantra:14 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:15» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह वरुण कैसा है, इस का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

Word-Meaning: - हे (राजन्) प्रकाशमान ! (प्रचेतः) अत्युत्तम विज्ञान (असुर) प्राणों में रमने (वरुण) अत्यन्त प्रशंसनीय (अस्मभ्यम्) हमको विज्ञान देनेहारे भगवन् जगदीश्वर ! जिसलिये हम लोगों के (कृतानि) किये हुए (एनांसि) पापों को (क्षयन्) विनाश करते हुए (अवशिश्रथः) विज्ञान आदि दान से उनके फलों को शिथिल अच्छे प्रकार करते हैं, इसलिये हम लोग (नमोभिः) नमस्कार वा (यज्ञेभिः) कर्म उपासना और ज्ञान और (हविर्भिः) होम करने योग्य अच्छे-अच्छे पदार्थों से (ते) आपका (हेळः) निरादर (अव) न कभी (ईमहे) करना जानते और मुख्य प्राण की भी विद्या को चाहते हैं॥१४॥
Connotation: - जिन मनुष्यों ने परमेश्वर के रचे हुए संसार में पदार्थ करके प्रकट किये हुए बोध से किये पाप कर्मों को फलों से शिथिल कर दिया, वैसा अनुष्ठान करें। जैसे अज्ञानी पुरुष को पापफल दुःखी करते हैं, वैसे ज्ञानी पुरुष को दुःख नहीं दे सकते॥१४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते।

Anvay:

हे राजन् प्रचेतोऽसुर वरुणास्मभ्यं विज्ञानप्रदातो भगवन् यतस्त्वमस्मत्कृतान्येनांसि क्षयन् सन्नवशिश्रथस्तस्माद्वयं नमोभिर्यज्ञेभिस्ते तव हेळोऽवेमहे मुख्यप्राणस्य वा॥१४॥

Word-Meaning: - (अव) क्रियार्थे (ते) तव (हेळः) हिड्यते विज्ञायते प्राप्यते यः सः (नमोभिः) नमस्कारैरन्नैर्जलैर्वा। नम इत्यन्ननामसु पठितम्। (निघं०२.७) जलनामसु वा। (निघं०१.१२) (अव) पृथगर्थे (यज्ञेभिः) कर्मोपासनाज्ञाननिष्पादकैः कर्मभिः। अत्र बहुलं छन्दसि इति भिस ऐस् न। (ईमहे) बुध्यामहे (हविर्भिः) दातुं ग्रहीतुमर्हैः। अत्र अर्चिशुचिहुसृपि० (उणा०२.१०४) अनेन हु धातोरिसिः प्रत्ययः। (क्षयन्) विनाशयन् (अस्मभ्यम्) विद्यानुष्ठातृभ्यः (असुर) असुषु रमते तत्सम्बुद्धौ स वा (प्रचेतः) प्रकृष्टं चेतो विज्ञानं यस्य तत्सम्बुद्धौ स वा (राजन्) प्रकाशमान (एनांसि) पापानि (शिश्रथः) विज्ञानदानेन शिथिलानि करोतु (कृतानि) अनुचरितानि॥१४॥
Connotation: - यैर्मनुष्यैर्यथा परमेश्वररचितसृष्टौ विज्ञापितेन बोधेन कृतानि पापकर्माणि फलैः शिथिलायन्ते तथानुष्ठातव्यम्। यथा ज्ञानरहितं पुरुषं कर्मफलानि पीडयन्ति तथा नैव ज्ञानसहितं पीडयितुं समर्थानि भवन्तीति वेद्यम्॥१४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी परमेश्वरनिर्मित संसारात निर्माण केलेले पदार्थ पाहून पापकर्माचे फल शिथिल होईल असे अनुष्ठान करावे. जसे अज्ञानी पुरुषाला पापफळ दुःखी करतात, तसेच ज्ञानी पुरुषाला दुःख देत नाहीत. ॥ १४ ॥