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सं मा॑ग्ने॒ वर्च॑सा सृज॒ सं प्र॒जया॒ समायु॑षा। वि॒द्युर्मे॑ अस्य दे॒वा इन्द्रो॑ विद्यात्स॒ह ऋषि॑भिः॥

English Transliteration

sam māgne varcasā sṛja sam prajayā sam āyuṣā | vidyur me asya devā indro vidyāt saha ṛṣibhiḥ ||

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Pad Path

सम्। मा॒। अ॒ग्ने॒। वर्च॑सा। सृ॒ज॒। सम्। प्र॒ऽजया॑। सम्। आयु॑षा। वि॒द्युः। मे॒। अ॒स्य॒। दे॒वाः। इन्द्रः॑। वि॒द्या॒त्। स॒ह। ऋषि॑ऽभिः॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:23» Mantra:24 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:12» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:24


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

वह अग्नि किस प्रकार का है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - मनुष्यों को योग्य है कि जो (ऋषिभिः) वेदार्थ जाननेवालों के (सह) साथ (देवाः) विद्वान् लोग और (इन्द्रः) परमात्मा (अग्ने) भौतिक अग्नि (वर्चसा) दीप्ति (प्रजया) सन्तान आदि पदार्थ और (आयुषा) जीवन से (मा) मुझे (संसृज) संयुक्त करता है, उस और (मे) मेरे (अस्य) इस जन्म के कारण को जानते और (विद्यात्) जानता है, इससे उनका संग और उसकी उपासना नित्य करें॥२४॥
Connotation: - जब जीव पिछले शरीर को छोड़कर अगले शरीर को प्राप्त होता है, तब उसके साथ जो स्वाभाविक मानस अग्नि जाता है, वही फिर शरीर आदि पदार्थों को प्रकाशित करता है, जो जीवों के पाप-पुण्य और जन्म का कारण है, उसको वे (ऋषि और विद्वान्) ही परमेश्वर के सिवाय जानते हैं, किन्तु परमेश्वर तो निश्चय के साथ यथायोग्य जीवों के पाप वा पुण्य को जानकर, उनके कर्म के अनुसार शरीर देकर, सुख दुःख का भोग कराता ही है॥२४॥पूर्व सूक्त से कहे हुए अश्वि आदि पदार्थों के अनुषङ्गी जो वायु आदि पदार्थ हैं, उनके वर्णन से पिछले बाईसवें सूक्त के अर्थ के साथ इस तेईसवें सूक्त के अर्थ की सङ्गति जाननी चाहिये॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

सोऽग्निः कीदृश इत्युपदिश्यते।

Anvay:

मनुष्यैर्ऋषिभिः सह देवाः विद्वांसः परमात्मा च यदग्ने अग्निर्वर्चसा प्रजयाऽऽयुषा मा मां सृजति संयुनक्ति, यन्मे मम पापपुण्यात्मकं कर्म जन्मनः कारणं विद्युर्विदन्ति विद्यात् वेत्ति च तस्मान्मया तत्सङ्गस्तदुपासना च नित्यं कार्य्या॥२४॥

Word-Meaning: - (सम्) योगार्थे (मा) माम् (अग्ने) विद्युदाख्यः (वर्चसा) दीप्त्या (सृज) सृजति। अत्र व्यत्ययो लडर्थे लोट् च। (सम्) मेलनार्थे (प्रजया) सन्तानादिना (सम्) एकीभावे (आयुषा) जीवनेन (विद्युः) विदन्ति। अत्र लडर्थे लिङ्। (मे) मम जीवस्य (अस्य) मनुष्यपशुवृक्षादिस्थस्य (देवाः) विद्वांसः (इन्द्रः) परमेश्वरः (विद्यात्) वेत्ति। अत्र लडर्थे लिङ्। (सह) सङ्गार्थे (ऋषिभिः) विचारशीलैर्मन्त्रार्थदृष्टिभिः॥२४॥
Connotation: - यदा जीवः पूर्व शरीरं त्यक्त्वोत्तरं प्राप्नोति तदा तेन सह यः स्वाभाविको मानसोऽग्निर्गच्छति स एव पुनः शरीरादिकं प्रकाशयति जीवानां यत्पापं पुण्यं च जन्मकारणमस्ति तदृषिसहिता विद्वांसो जानन्ति नेतरे, परमेश्वरस्तु खलु यथार्थतया सर्वं विदित्वा स्वस्वकर्मानुसारेण जीवान् शरीरसंयुक्तान् कृत्वा फलं भोजयतीति॥२४॥पूर्वसूक्तेनोक्तैरश्व्यादिभिर्वाय्वादीनामनुषङ्गिणामत्रोक्तत्वाद् द्वाविंशेनातीतेन सूक्तार्थेन सहास्य त्रयोविंशस्य सूक्तोक्तार्थस्य सङ्गतिरस्तीति बोध्यम्॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जेव्हा जीव पूर्वीचे शरीर सोडून पुढचे शरीर प्राप्त करतो तेव्हा त्याच्याबरोबर स्वाभाविक मानस अग्नी जातो तोच पुन्हा शरीर इत्यादी पदार्थांना प्रकाशित करतो. जो जीवाचे पाप व पुण्य आणि जन्माचे कारण आहे, त्यांना परमेश्वरानंतर विद्वान जाणतात; परंतु परमेश्वर निश्चयपूर्वक जीवांच्या पाप-पुण्यांना जाणून त्यांच्या कर्मानुसार शरीर देतो व सुखदुःखांचा भोग करवितो. ॥ २४ ॥