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अ॒म्बयो॑ य॒न्त्यध्व॑भिर्जा॒मयो॑ अध्वरीय॒ताम्। पृ॒ञ्च॒तीर्मधु॑ना॒ पयः॑॥

English Transliteration

ambayo yanty adhvabhir jāmayo adhvarīyatām | pṛñcatīr madhunā payaḥ ||

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Pad Path

अ॒म्बयः॑। य॒न्ति॒। अध्व॑ऽभिः। जा॒मयः॑। अ॒ध्व॒रि॒ऽय॒ताम्। पृ॒ञ्च॒तीः। मधु॑ना। पयः॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:23» Mantra:16 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:11» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:16


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अगले मन्त्र में जल के गुण प्रकाशित किये हैं-

Word-Meaning: - जैसे भाइयों को (जामयः) भाई लोग अनुकूल आचरण सुख सम्पादन करते हैं, वैसे ये (अम्बयः) रक्षा करनेवाले जल (अध्वरीयताम्) जो कि हम लोग अपने आप को यज्ञ करने की इच्छा करते हैं, उनको (मधुना) मधुरगुण के साथ (पयः) सुखकारक रस को (अध्वभिः) मार्गों से (पृञ्चतीः) पहुँचानेवाले (यन्ति) प्राप्त होते हैं॥१६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे बन्धुजन अपने भाई को अच्छी प्रकार पुष्ट करके सुख करते हैं, वैसे ये जल ऊपर-नीचे जाते-आते हुए मित्र के समान प्राणियों के सुखों का सम्पादन करते हैं और इनके विना किसी प्राणी वा अप्राणी की उन्नति नहीं हो सकती। इससे ये रस की उत्पत्ति के द्वारा सब प्राणियों को माता पिता के तुल्य पालन करते हैं॥१६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ जलगुणा उपदिश्यन्ते।

Anvay:

यथा बन्धूनां जामयो बन्धवोऽनुकूलाचरणैः सुखानि सम्पादयन्ति, तथैवेमा अम्बय आपो अध्वरीयतामस्माकमध्वभिर्मधुना पयः पृञ्चतीः स्पर्शयन्त्यो यन्ति॥१६॥

Word-Meaning: - (अम्बयः) रक्षणहेतव आपः (यन्ति) गच्छन्ति (अध्वभिः) मार्गैः (जामयः) बन्धव इव (अध्वरीयताम्) आत्मनोऽध्वरमिच्छतामस्माकम्। अत्र न छन्दस्यपुत्रस्य। (अष्टा०७.४.३५) अपुत्रादीनामिति वक्तव्यम् (अष्टा०वा०७.४.३५) इति वचनादीकारनिषेधो न भवति। वा छन्दसि सर्वे विधयो भवन्ति इति नियमात् कव्यध्वरपृतनस्यर्चि लोपः। (अष्टा०७.४.३९) इत्यकारलोपोऽपि न भवति (पृञ्चतीः) स्पर्शयन्त्यः। अत्र सुपां सुलुग्० इति पूर्वसवर्णादेशोऽन्तर्गतो ण्यर्थश्च। (मधुना) मधुरगुणेन सह (पयः) सुखकारकं रसम्॥१६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा बन्धवः स्वबन्धून् सम्पोष्य सुखयन्ति, तथेमा आप उपर्य्यधो गच्छन्त्यः सत्यो मित्रवत् प्राणिनां सुखानि सम्पादयन्ति, नैताभिर्विना केषांचित् प्राण्यप्राणिनामुन्नतिः सम्भवति, तस्मादेताः सम्यगुपयोजनीयाः॥१६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात लुप्तोपमालंकार आहे. जसे बंधुगण आपल्या बंधूंना चांगल्या प्रकारे पुष्ट करून सुखी करतात तशा जलधारा वर-खाली प्रवाहित होऊन मित्राप्रमाणे सुखी करतात. त्यांच्या शिवाय कोणत्याही प्राण्याची व अप्राण्याची उन्नती होऊ शकत नाही. त्यामुळे हे जल रसाची उत्पत्ती करून सर्व प्राण्यांना माता व पित्याप्रमाणे पालन करते. ॥ १६ ॥