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उ॒तो स मह्य॒मिन्दु॑भिः॒ षड्यु॒क्ताँ अ॑नु॒सेषि॑धत्। गोभि॒र्यवं॒ न च॑र्कृषत्॥

English Transliteration

uto sa mahyam indubhiḥ ṣaḍ yuktām̐ anuseṣidhat | gobhir yavaṁ na carkṛṣat ||

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Pad Path

उ॒तो इति॑। सः। मह्य॑म्। इन्दु॑ऽभिः। षट्। यु॒क्तान्। अ॒नु॒ऽसेसि॑धत्। गोभिः॑। यव॑म्। न। च॒र्कृ॒ष॒त्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:23» Mantra:15 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:10» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:15


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर अगले मन्त्र में उस ईश्वर ही के गुणों का उपदेश किया है-

Word-Meaning: - जैसे खेती करनेवाला मनुष्य हर एक अन्न की सिद्धि के लिये भूमि को (चर्कृषत्) वारंवार जोतता है (न) वैसे (सः) वह ईश्वर (मह्यम्) जो मैं धर्मात्मा पुरुषार्थी हूँ, उसके लिये (इन्दुभिः) स्निग्ध मनोहर पदार्थों और वसन्त आदि (षट्) छः (ऋतून्) ऋतुओं को (युक्तान्) (गोभिः) गौ, हाथी और घोड़े आदि पशुओं के साथ सुखसंयुक्त और (यवम्) यव आदि अन्न को (अनुसेषिधत्) वारंवार हमारे अनुकूल प्राप्त करे, इससे मैं उसी को इष्टदेव मानता हूँ॥१५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य वा खेती करनेवाला किरण वा हल आदि से वारंवार भूमि को आकर्षित वा खन, बो और धान्य आदि की प्राप्ति कर सचिक्कनकर पदार्थों के सेवन के साथ वसन्त आदि छः ऋतुओं को सुखों से संयुक्त करता है, वैसे ईश्वर भी समय के अनुकूल सब जीवों को कर्मों के अनुसार रस को उत्पन्न वा ऋतुओं के विभाग से उक्त ऋतुओं को सुख देनेवाली करता है॥१५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तस्यैव गुणा उपदिश्यन्ते।

Anvay:

कृषीवलो भूमिं चर्कृषद्धान्यादिप्राप्त्यर्थं पुनः पुनर्भूमिं कर्षतो वायमीश्वरो मह्यमिन्दुभिस्सह वसन्तादीन् युक्तान् गोभिः सह यवमनुसेषिधत् पुनः पुनरनुगतं प्रापयेत् तस्मादहं तमेवेष्टं मन्ये॥१५॥

Word-Meaning: - (उतो) पक्षान्तरे (सः) जगदीश्वरः (मह्यम्) धर्मात्मने पुरुषार्थिने (इन्दुभिः) स्निग्धैः पदार्थैः सह (षट्) वसन्तादीनृतून् (युक्तान्) सुखसम्पादकान् (अनुसेषिधत्) पुनःपुनरनुकूलान् प्रापयेत्। अत्र यङलुगन्ताल्लेट् सेधतेर्गतौ। (अष्टा०८.३.११३) इत्यभ्यासस्य षत्वप्रतिषेधः। उपसर्गादिति वक्तव्यं किं प्रयोजनम्। उपसर्गाद् या प्राप्तिस्तस्याः प्रतिषेधो यथा स्याद्, अभ्यासाद्या प्राप्तिस्तस्याः प्रतिषेधो मा भूदिति। स्तम्भुसिवु० (अष्टा०वा०८.३.११६) अत्र महाभाष्यकारेणोक्तम्। सायणाचार्येणेदमज्ञानान्न बुद्धमिति (गोभिः) गोहस्त्यश्वादिभिः सह (यवम्) यवादिकमन्नम् (न) इव (चर्कृषत्) पुनः पुनर्भूमिं कर्षेत्। अत्र यङ्लुगन्ताल्लेट्॥१५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा सूर्य्यः कृषीवलो वा किरणैर्हलादिभिर्वा पुनः पुनर्भूमिमाकृष्य कर्षित्वा समुप्य धान्यादीनि प्राप्य वसन्तादीन् षड्ऋतून् सुखसंयुक्तान् करोति, तथेश्वरोऽप्यनुसमयं सर्वेभ्यो जीवेभ्यः कर्मानुसारेण रसोत्पादनविभजनेनर्तून् सुखसंपादकान् करोति॥१५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा सूर्य किरणांद्वारे व शेतकरी नांगर इत्यादींद्वारे भूमीला वारंवार सुपीक करून, धान्य पेरून धान्य इत्यादीची प्राप्ती करून, खाण्यायोग्य बनवून पदार्थांचे सेवन करण्यासाठी वसंत इत्यादी सर्व ऋतूंमध्ये सुख देतो, तसे ईश्वरही वेळेनुसार कर्माप्रमाणे सर्व जीवांसाठी रस उत्पन्न करून, करवून ऋतूच्या विभागाप्रमाणे वरील ऋतूंना सुख देणारे बनवितो. ॥ १५ ॥