उ॒तो स मह्य॒मिन्दु॑भिः॒ षड्यु॒क्ताँ अ॑नु॒सेषि॑धत्। गोभि॒र्यवं॒ न च॑र्कृषत्॥
uto sa mahyam indubhiḥ ṣaḍ yuktām̐ anuseṣidhat | gobhir yavaṁ na carkṛṣat ||
उ॒तो इति॑। सः। मह्य॑म्। इन्दु॑ऽभिः। षट्। यु॒क्तान्। अ॒नु॒ऽसेसि॑धत्। गोभिः॑। यव॑म्। न। च॒र्कृ॒ष॒त्॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर अगले मन्त्र में उस ईश्वर ही के गुणों का उपदेश किया है-
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तस्यैव गुणा उपदिश्यन्ते।
कृषीवलो भूमिं चर्कृषद्धान्यादिप्राप्त्यर्थं पुनः पुनर्भूमिं कर्षतो वायमीश्वरो मह्यमिन्दुभिस्सह वसन्तादीन् युक्तान् गोभिः सह यवमनुसेषिधत् पुनः पुनरनुगतं प्रापयेत् तस्मादहं तमेवेष्टं मन्ये॥१५॥
MATA SAVITA JOSHI
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