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तयो॒रिद्घृ॒तव॒त्पयो॒ विप्रा॑ रिहन्ति धी॒तिभिः॑। ग॒न्ध॒र्वस्य॑ ध्रु॒वे प॒दे॥

English Transliteration

tayor id ghṛtavat payo viprā rihanti dhītibhiḥ | gandharvasya dhruve pade ||

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Pad Path

तयोः॑। इत्। घृ॒तऽव॑त्। पयः॑। विप्राः॑। रि॒ह॒न्ति॒। धी॒तिऽभिः॑। ग॒न्ध॒र्वस्य॑। ध्रु॒वे। प॒दे॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:22» Mantra:14 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:6» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

उक्त दो प्रकार के लोकों से क्या-क्या करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - जो (विप्राः) बुद्धिमान् पुरुष जिनसे प्रशंसनीय होते हैं (तयोः) उन प्रकाशमय और अप्रकाशमय लोकों के (धीतिभिः) धारण और आकर्षण आदि गुणों से (गन्धर्वस्य) पृथिवी को धारण करनेवाले वायु का (ध्रुवे) जो सब जगह भरा निश्चल (पदे) अन्तरिक्ष स्थान है, उसमें विमान आदि यानों को (रिहन्ति) गमनागमन करते हैं, वे प्रशंसित होके, उक्त लोकों ही के आश्रय से (घृतवत्) प्रशंसनीय जलवाले (पयः) रस आदि पदार्थों को ग्रहण करते हैं॥१४॥
Connotation: - विद्वानों को पृथिवी आदि पदार्थों से विमान आदि यान बनाकर उनकी कलाओं में जल और अग्नि के प्रयोग से भूमि, समुद्र और आकाश में जाना आना चाहिये॥१४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

एताभ्यां कि कार्य्यमित्युपदिश्यते।

Anvay:

ये विप्रा याभ्यां श्लाघन्ते तयोर्धीतिभिर्गन्धर्वस्य ध्रुवे पदे विमानादीनि यानानि रिहन्ति ते श्लाघन्ते घृतवत्पय आददते॥१४॥

Word-Meaning: - (तयोः) द्यावापृथिव्योः (इत्) एव (घृतवत्) घृतं प्रशस्तं जलं विद्यते यस्मिंस्तत्। अत्र प्रशंसार्थे मतुप्। (पयः) रसादिकम् (विप्राः) मेधाविनः (रिहन्ति) आददते श्लाघन्ते वा (धीतिभिः) धारणाकर्षणादिभिर्गुणैः (गन्धर्वस्य) यो गां पृथिवीं धरति सः। गन्धर्वो वायुस्तस्य वातो गन्धर्वस्तस्यापो अप्सरसः। (श०ब्रा०९.३.३.१०) (ध्रुवे) निश्चले (पदे) सर्वत्र प्राप्तेऽन्तरिक्षे॥१४॥
Connotation: - विद्वद्भिः पृथिव्यादिपदार्थैर्यानानि रचयित्वा तत्र कलासु जलाग्निप्रयोगेण भूसमुद्रान्तरिक्षेषु गन्तव्यमागन्तव्यं चेति॥१४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - विद्वानांनी पृथ्वी इत्यादी पदार्थांपासून विमान वगैरे याने तयार करावीत व त्यांच्या कलांमध्ये जल व अग्नीचा प्रयोग करून भूमी, समुद्र व आकाश यात जाणे येणे करावे. ॥ १४ ॥