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प्रा॒त॒र्युजा॒ विबो॑धया॒श्विना॒वेह ग॑च्छताम्। अ॒स्य सोम॑स्य पी॒तये॑॥

English Transliteration

prātaryujā vi bodhayāśvināv eha gacchatām | asya somasya pītaye ||

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Pad Path

प्रा॒तः॒ऽयुजा॑। वि। बो॒ध॒य॒। अ॒श्विनौ॑। आ। इ॒ह। ग॒च्छ॒ता॒म्। अ॒स्य। सोम॑स्य। पी॒तये॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:22» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:4» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब बाईसवें सूक्त का आरम्भ है। इसके पहिले मन्त्र में अश्वि के गुणों का उपदेश किया है-

Word-Meaning: - हे विद्वन् मनुष्य ! जो (प्रातर्युजा) शिल्पविद्या सिद्ध यन्त्रकलाओं में पहिले बल देनेवाले (अश्विनौ) अग्नि और पृथिवी (इह) इस शिल्प व्यवहार में (गच्छताम्) प्राप्त होते हैं, इससे उनको (अस्य) इस (सोमस्य) उत्पन्न करने योग्य सुखसमूह को (पीतये) प्राप्ति के लिये तुम हमको (विबोधय) अच्छी प्रकार विदित कराओ॥१॥
Connotation: - शिल्प कार्य्यों की सिद्धि करने की इच्छा करनेवाले मनुष्यों को चाहिये कि उसमें भूमि और अग्नि का पहिले ग्रहण करें, क्योंकि इनके विना विमान आदि यानों की सिद्धि वा गमन सम्भव नहीं हो सकता॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

तत्रादावश्विगुणा उपदिश्यन्ते।

Anvay:

हे विद्वन् ! यौ प्रातर्युजावश्विनाविह गच्छतां प्राप्नुतस्तावस्य सोमस्य पीतये सर्वसुखप्राप्तयेऽस्मान् विबोधयावगमय॥१॥

Word-Meaning: - (प्रातर्युजा) प्रातः प्रथमं युङ्क्तस्तौ। अत्र सुपां सुलुग्० इत्याकारादेशः। (वि) विशिष्टार्थे (बोधय) अवगमय (अश्विनौ) द्यावापृथिव्यौ (आ) समन्तात् (इह) शिल्पव्यवहारे (गच्छताम्) प्राप्नुतः। अत्र लडर्थे लोट् (अस्य) प्रत्यक्षस्य (सोमस्य) स्तोतव्यस्य सुखस्य (पीतये) प्राप्तये॥१॥
Connotation: - शिल्पकार्य्याणि चिकीर्षुभिर्मनुष्यैर्भूम्यग्नी प्रथमं संग्राह्यौ नैताभ्यां विना यानादिसिद्धिगमने सम्भवत इतीश्वरस्योपदेशः॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

पहिल्या सूक्तात जे दोन पदांचे अर्थ सांगितलेले आहेत, त्यांचे सहचारी अश्वी, सविता, अग्नी, देवी, इंद्राणी, वरुणानी, अग्नायी, द्यावापृथ्वी, भूमी, विष्णू यांच्या अर्थाचे प्रकटीकरण या सूक्तात केलेले आहे. यामुळे पहिल्या सूक्ताबरोबर या सूक्ताची संगती जाणली पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - शिल्पकार्याची सिद्धी करण्याची इच्छा बाळगणाऱ्यांनी भूमी व अग्नीचा प्रथम अंगीकार करावा कारण त्याशिवाय विमान इत्यादी यानांची सिद्धी व गमन करणे शक्य नसते. ॥ १ ॥