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ता म॒हान्ता॒ सद॒स्पती॒ इन्द्रा॑ग्नी॒ रक्ष॑ उब्जतम्। अप्र॑जाः सन्त्व॒त्रिणः॑॥

English Transliteration

tā mahāntā sadaspatī indrāgnī rakṣa ubjatam | aprajāḥ santv atriṇaḥ ||

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Pad Path

ता। म॒हान्ता॑। सद॒स्पती॒ इति॑। इन्द्रा॒ग्नी॒ इति॑। रक्षः॑। उ॒ब्ज॒त॒म्। अप्र॑जाः। स॒न्तु॒। अ॒त्रिणः॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:21» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:3» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे किस प्रकार के हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - मनुष्यों ने जो अच्छी प्रकार क्रिया की कुशलता में संयुक्त किये हुए (महान्ता) बड़े-बड़े उत्तम गुणवाले (ता) पूर्वोक्त (सदस्पती) सभाओं के पालन के निमित्त (इन्द्राग्नी) वायु और अग्नि हैं, जो (रक्षः) दुष्ट व्यवहारों को (उब्जतम्) नाश करते और उनसे (अत्रिणः) शत्रु जन (अप्रजाः) पुत्रादिरहित (सन्तु) हों, उनका उपयोग सब लोग क्यों न करें॥५॥
Connotation: - विद्वानों को योग्य है कि जो सब पदार्थों के स्वरूप वा गुणों से अधिक वायु और अग्नि हैं, उनको अच्छी प्रकार जानकर क्रियाव्यवहार में संयुक्त करें, तो वे दुःखों को निवारण करके अनेक प्रकार की रक्षा करनेवाले होते हैं॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते।

Anvay:

मनुष्यैर्यौ सम्यक् प्रयुक्तौ महान्ता महान्तौ सदस्पती इन्द्राग्नी रक्ष उब्जतं कुटिलं रक्षो दूरीकुरुतो याभ्यामत्रिणः शत्रवोऽप्रजाः सन्तु भवेयुरेतौ सर्वैर्मनुष्यैः कथं न सूपयोजनीयौ॥५॥

Word-Meaning: - (ता) तौ (महान्ता) महागुणौ। अत्रोभयत्र सुपां सुलुग्० इत्याकारादेशः। (सदस्पती) सीदन्ति गुणा येषु द्रव्येषु तानि सदांसि तेषां यौ पालयितारौ तौ (इन्द्राग्नी) तावेव (रक्षः) दुष्टव्यवहारान्। अत्र व्यत्ययेनैकवचनम्। (उब्जतम्) कुटिलमपहतः। अत्र व्यत्ययो लडर्थे लोट् च। (अप्रजाः) अविद्यमानाः प्रजा येषां ते (सन्तु) भवेयुः। अत्र लडर्थे लोट्। (अत्रिणः) शत्रवः॥५॥
Connotation: - विद्वद्भिः सर्वेषु पदार्थेषु स्वरूपेण गुणैरधिकौ वाय्वग्नी सम्यग्विदित्वा सम्प्रयोजितौ दुःखनिवारणेन रक्षणहेतू भवत इति॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - सर्व पदार्थांच्या स्वरूपापेक्षा गुणाने अधिक वायू व अग्नी असतात. त्यांना जाणून विद्वानांनी क्रियाव्यवहारात संयुक्त करावे तेव्हा ते दुःखाचे निवारण करून अनेक प्रकारे रक्षण करतात. ॥ ५ ॥