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ता मि॒त्रस्य॒ प्रश॑स्तय इन्द्रा॒ग्नी ता ह॑वामहे। सो॒म॒पा सोम॑पीतये॥

English Transliteration

tā mitrasya praśastaya indrāgnī tā havāmahe | somapā somapītaye ||

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Pad Path

ता। मि॒त्रस्य॑। प्रऽश॑स्तये। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। ता। ह॒वा॒म॒हे॒। सो॒म॒ऽपा। सोम॑ऽपीतये॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:21» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:3» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

वे किस उपकार के करनेवाले होते हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - जैसे विद्वान् लोग वायु और अग्नि के गुणों को जानकर उपकार लेते हैं, वैसे हम लोग भी (ता) उन पूर्वोक्त (मित्रस्य) सबके उपकार करनेहारे और सब के मित्र के (प्रशस्तये) प्रशंसनीय सुख के लिये तथा (सोमपीतये) सोम अर्थात् जिस व्यवहार में संसारी पदार्थों की अच्छी प्रकार रक्षा होती है, उसके लिये (ता) उन (सोमपा) सब पदार्थों की रक्षा करनेवाले (इन्द्राग्नी) वायु और अग्नि को (हवामहे) स्वीकार करते हैं॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में लुप्तोपमालङ्कार है। जब मनुष्य मित्रपन का आश्रय लेकर एक दूसरे के उपकार के लिये विद्या से वायु और अग्नि को कार्य्यों में संयुक्त करके रक्षा के साथ पदार्थ और व्यवहारों की उन्नति करते हैं, तभी वे सुखी होते हैं॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

तौ किमुपकारकौ भवत इत्युपदिश्यते।

Anvay:

यथा विद्वांसो याविन्द्राग्नी मित्रस्य प्रशस्तय आह्वयन्ति तथैव ता तौ वयमपि हवामहे यौ च सोमपौ सोमपीतय आह्वयन्ति ता तावपि वयं हवामहे॥३॥

Word-Meaning: - (ता) तौ। अत्र त्रिषु सुपां सुलुग्० इत्याकारादेशः। (मित्रस्य) सर्वोपकारकस्य सर्वसुहृदः (प्रशस्तये) प्रशंसनीयसुखाय (इन्द्राग्नी) वाय्वग्नी (ता) तौ (हवामहे) स्वीकुर्महे। अत्र ‘ह्वेञ्’ धातोर्बहुलं छन्दसि इति सम्प्रसारणम्। (सोमपा) यौ सोमान् पदार्थसमूहान् रक्षतस्तौ (सोमपीतये) सोमानां पदार्थानां पीती रक्षणं यस्मिन् व्यवहारे तस्मै॥३॥
Connotation: - अत्र लुप्तोपमालङ्कारः। यदा मनुष्या मित्रभावमाश्रित्य परस्परोपकाराय विद्यया वाय्वग्न्योः कार्य्येषु योजनरक्षणे कृत्वा पदार्थव्यवहारानुन्नयन्ति तदैव सुखिनो भवन्ति॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात लुप्तोपमालंकार आहे. जेव्हा माणसे मैत्री करून परस्पर उपकार करण्यासाठी वायू व अग्नीला विद्येद्वारे कार्यात संयुक्त करतात व पदार्थांचे रक्षण करतात आणि व्यवहाराची उन्नती करतात, तेव्हाच ती सुखी होतात. ॥ ३ ॥