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उ॒त त्यं च॑म॒सं नवं॒ त्वष्टु॑र्दे॒वस्य॒ निष्कृ॑तम्। अक॑र्त च॒तुरः॒ पुनः॑॥

English Transliteration

uta tyaṁ camasaṁ navaṁ tvaṣṭur devasya niṣkṛtam | akarta caturaḥ punaḥ ||

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Pad Path

उ॒त। त्यम्। च॒म॒सम्। नव॑म्। त्वष्टुः॑। दे॒वस्य॑। निःऽकृ॑तम्। अक॑र्त। च॒तुरः॑। पुन॒रिति॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:20» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:2» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

उक्त कार्य्य के करने में किसका सामर्थ्य होता है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है।

Word-Meaning: - जब विद्वान् लोग जो (त्वष्टुः) शिल्पी अर्थात् कारीगर (देवस्य) विद्वान् का (निष्कृतम्) सिद्ध किया हुआ काम सुख का देनेवाला है, (त्यम्) उस (नवम्) नवीन दृष्टिगोचर कर्म को देखकर (उत) निश्चय से (पुनः) उसके अनुसार फिर (चतुरः) भू, जल, अग्नि और वायु से सिद्ध होनेवाले शिल्पकामों को (अकर्त्त) अच्छी प्रकार सिद्ध करते हैं, तब आनन्दयुक्त होते हैं॥६॥
Connotation: - मनुष्य लोग किसी क्रियाकुशल कारीगर के निकट बैठकर उसकी चतुराई को दृष्टिगोचर करके फिर सुख के साथ कारीगरी काम करने को समर्थ हो सकते हैं॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

कस्यैतत्करणे सामर्थ्यं भवतीत्युपदिश्यते।

Anvay:

यदा विद्वांसस्त्वष्टुर्देवस्य त्यं तं निष्कृतं नवं चमसमिदानींतनं प्रत्यक्षं दृष्ट्वोत पुनश्चतुरोऽकर्त्त कुर्वन्ति तदानन्दिता जायन्ते॥६॥

Word-Meaning: - (उत) अपि (त्यम्) तम् (चमसम्) चमन्ति भुञ्जते सुखानि येन व्यवहारेण तम्। (नवम्) नवीनम् (त्वष्टुः) शिल्पिनः (देवस्य) विदुषः (निष्कृतम्) नितरां सम्पादितम् (अकर्त्त) कुर्वन्ति। अत्र लडर्थे लुङ्, मन्त्रे घसह्वरणश० इति च्लेर्लुक्, वचनव्यत्ययेन झस्य स्थाने तः, छन्दस्युभयथा इत्यार्धधातुकं मत्वा गुणादेशश्च। (चतुरः) चतुर्विधानि भूजलाग्निवायुभिः सिद्धानि शिल्पकर्माणि (पुनः) पश्चादर्थे॥६॥
Connotation: - मनुष्याः कस्यचित् क्रियाकुशलस्य शिल्पिनः समीपे स्थित्वा तत्कृतिं प्रत्यक्षीकृत्य सुखेनैव शिल्पसाध्यानि कार्य्याणि कर्त्तुं शक्नुवन्तीति॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसे जेव्हा एखाद्या क्रियेत कुशल असणाऱ्या कारागिराजवळ राहून प्रत्यक्ष त्याची कृती पाहतात तेव्हा चतुराईने कारागिराचे काम करण्यास समर्थ होऊ शकतात. ॥ ६ ॥