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युवा॑ना पि॒तरा॒ पुनः॑ स॒त्यम॑न्त्रा ऋजू॒यवः॑। ऋ॒भवो॑ वि॒ष्ट्य॑क्रत॥

English Transliteration

yuvānā pitarā punaḥ satyamantrā ṛjūyavaḥ | ṛbhavo viṣṭy akrata ||

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Pad Path

युवा॑ना। पि॒तरा॑। पुन॒रिति॑। स॒त्यऽम॑न्त्राः। ऋ॒जू॒ऽयवः॑। ऋ॒भवः॑। वि॒ष्टी। अ॒क्र॒त॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:20» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:1» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे विद्वान् कैसे हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - जो (ऋजूयवः) कर्मों से अपनी सरलता को चाहने और (सत्यमन्त्राः) सत्य अर्थात् यथार्थ विचार के करनेवाले (ऋभवः) बुद्धिमान् सज्जन पुरुष हैं, वे (विष्टी) व्याप्त होने (युवाना) मेल अमेल स्वभाववाले तथा (पितरा) पालनहेतु पूर्वोक्त अग्नि और जल को क्रिया की सिद्धि के लिये वारम्वार (अक्रत) अच्छी प्रकार प्रयुक्त करते हैं॥४॥
Connotation: - जो आलस्य को छोड़े हुए सत्य में प्रीति रखने और सरल बुद्धिवाले मनुष्य हैं, वे ही अग्नि और जल आदि पदार्थों से उपकार लेने को समर्थ हो सकते हैं॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते कीदृशा इत्युपदिश्यते।

Anvay:

य ऋजूयवः सत्यमन्त्रा ऋभवस्ते हि विष्टी युवाना पितराऽश्विनौ क्रियासिद्ध्यर्थं पुनः पुनरक्रत सम्प्रयुक्तौ कुर्वन्ति॥४॥

Word-Meaning: - (युवाना) मिश्रामिश्रगुणस्वभावौ। अत्रोभयत्र सुपां सुलुग्० इत्याकारादेशः। (पितरा) शरीरात्मपालनहेतू (सत्यमन्त्राः) सत्यो यथार्थो मन्त्रो विचारो येषां ते (ऋजूयवः) कर्मभिरात्मन ऋजुत्वमिच्छन्तस्तच्छीलाः। अत्र क्याच्छन्दसि इत्युः प्रत्ययः। (ऋभवः) मेधाविनः। ऋभव इति मेधाविनामसु पठितम्। (निघं०३.१५) (विष्टी) व्यापनशीलावश्विनौ। अत्र क्तिच्क्तौ च संज्ञायाम्। (अष्टा०३.३.१७४) अनेन क्तिच् प्रत्ययः। (अक्रत) कुर्वन्ति। अत्र लडर्थे लुङ्। मन्त्रे घसह्वरणश० (अष्टा०२.४.८०) इति च्लेर्लुक् च॥४॥
Connotation: - येऽनलसाः सन्तः सत्यप्रिया आर्जवयुक्ता मनुष्याः सन्ति त एवाग्निजलादिपदार्थेभ्य उपकारं ग्रहीतुं शक्नुवन्तीति॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे आळस सोडून सत्य, प्रेमाने स्वीकारून नम्र व बुद्धिमान असतात, तीच अग्नी, जल इत्यादी पदार्थांपासून उपकार घेण्यासाटी समर्थ असतात. ॥ ४ ॥