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वाय॒विन्द्र॑श्च सुन्व॒त आ या॑त॒मुप॑ निष्कृ॒तम्। म॒क्ष्वित्था धि॒या न॑रा॥

English Transliteration

vāyav indraś ca sunvata ā yātam upa niṣkṛtam | makṣv itthā dhiyā narā ||

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Pad Path

वायो॒ इति॑। इन्द्रः॑। च॒। सु॒न्व॒तः। आ। या॒त॒म्। उप॑। निः॒ऽकृ॒तम्। म॒क्षु। इ॒त्था। धि॒या। न॒रा॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:2» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:4» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पूर्वोक्त इन्द्र और वायु के शरीर के भीतर और बाहरले कार्य्यों का अगले मन्त्र में उपदेश किया है-

Word-Meaning: - (वायो) हे सब के अन्तर्य्यामी ईश्वर ! जैसे आपके धारण किये हुए (नरा) संसार के सब पदार्थों को प्राप्त करानेवाले (इन्द्रश्च) अन्तरिक्ष में स्थित सूर्य्य का प्रकाश और पवन हैं, वैसे ये-इन्द्रिय० इस व्याकरण के सूत्र करके इन्द्र शब्द से जीव का, और प्राणो० इस प्रमाण से वायु शब्द करके प्राण का ग्रहण होता है-(मक्षु) शीघ्र गमन से (इत्था) धारण, पालन, वृद्धि और क्षय हेतु से सोम आदि सब ओषधियों के रस को (सुन्वतः) उत्पन्न करते हैं, उसी प्रकार (नरा) शरीर में रहनेवाले जीव और प्राणवायु उस शरीर में सब धातुओं के रस को उत्पन्न करके (इत्था) धारण, पालन, वृद्धि और क्षय हेतु से (मक्षु) सब अङ्गों को शीघ्र प्राप्त होकर (धिया) धारण करनेवाली बुद्धि और कर्मों से (निष्कृतम्) कर्मों के फलों को (आयातमुप) प्राप्त होते हैं ॥६॥
Connotation: - ब्रह्माण्डस्थ सूर्य्य और वायु सब संसारी पदार्थों को बाहर से तथा जीव और प्राण शरीर के भीतर के अङ्ग आदि को सब प्रकाश और पुष्ट करनेवाले हैं, परन्तु ईश्वर के आधार की अपेक्षा सब स्थानों में रहती है ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ तयोर्बहिरन्तः कार्य्यमुपदिश्यते।

Anvay:

हे वायो ! नरा नराविन्द्रवायू मक्ष्वित्था यथा सुन्वतस्तथा तौ धिया निष्कृतमुपायातमुपायतः ॥६॥

Word-Meaning: - (वायो) सर्वान्तर्यामिन्नीश्वर ! (इन्द्रश्च) अन्तरिक्षस्थः सूर्य्यप्रकाशो वायुर्वा। इन्द्रियमिन्द्रलिङ्गमिन्द्रदृष्ट-मिन्द्रसृष्टमिन्द्रजुष्टमिन्द्रदत्तमिति वा। (अष्टा०५.२.९३) इति सूत्राशयादिन्द्रशब्देन जीवस्यापि ग्रहणम्। प्राणो वै वायुः। (श०ब्रा०८.१.७.२) अत्र वायुशब्देन प्राणस्य ग्रहणम्। (सुन्वतः) अभिनिष्पादयतः (आ) समन्तात् (यातम्) प्राप्नुतः। अत्र व्यत्ययः। (उप) सामीप्यम् (निष्कृतम्) कर्मणां सिद्धिः फलं च (मक्षु) त्वरितगत्या। मक्ष्विति क्षिप्रनामसु पठितम्। (निघं०२.१५) (इत्था) धारणपालनवृद्धिक्षयहेतुना। था हेतौ च छन्दसि। (अष्टा०५.२.२६) इति थाप्रत्ययः। (धिया) धारणावत्या बुद्ध्या कर्मणा वा। धीरिति प्रज्ञानामसु पठितम्। (निघं०३.९) कर्मनामसु च। (निघं०२.१) (नरा) नयनकर्त्तारौ। सुपां सुलुगित्याकारादेशः ॥६॥
Connotation: - यथाऽत्र ब्रह्माण्डस्थाविन्द्रवायू सर्वप्रकाशकपोषकौ स्तः, एवं शरीरे जीवप्राणावपि, परन्तु सर्वत्रेश्वराधारापेक्षास्तीति ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ब्रह्मांडातील सूर्य व वायू सर्व जगातील पदार्थांना बाहेरून व जीव आणि प्राण शरीराच्या आतून अंगांना सर्वप्रकारे प्रकाशित व पुष्ट करतात; परंतु ईश्वराच्या आधाराची अपेक्षा सर्वत्र असते. ॥ ६ ॥