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इन्द्र॑वायू इ॒मे सु॒ता उप॒ प्रयो॑भि॒रा ग॑तम्। इन्द॑वो वामु॒शन्ति॒ हि॥

English Transliteration

indravāyū ime sutā upa prayobhir ā gatam | indavo vām uśanti hi ||

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Pad Path

इन्द्र॑वायू॒ इति॑। इ॒मे। सु॒ताः। उप॑। प्रयः॑ऽभिः॒। आ। ग॒त॒म्। इन्द॑वः। वाम्। उ॒शन्ति॑। हि॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:2» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:3» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:1» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब जो स्तोत्रों से प्रकाशित पदार्थ हैं, उनकी वृद्धि और रक्षा के निमित्त का अगले मन्त्र में उपदेश किया है-

Word-Meaning: - (इमे) ये प्रत्यक्ष (सुताः) उत्पन्न हुए पदार्थ (इन्दवः) जो जल, क्रियामय यज्ञ और प्राप्त होने योग्य भोग पदार्थ हैं, वे (हि) जिस कारण (वाम्) उन दोनों (इन्द्रवायू) सूर्य्य और पवन को (उशन्ति) प्रकाशित करते हैं, और वे सूर्य तथा पवन (उपागतम्) समीप प्राप्त होते हैं, इसी कारण (प्रयोभिः) तृप्ति करानेवाले अन्नादि पदार्थों के साथ सब प्राणी सुख की कामना करते हैं। यहाँ इन्द्र शब्द के भौतिक अर्थ के लिये ऋग्वेद के मन्त्र का प्रमाण दिखलाते हैं-(इन्द्रेण०) सूर्य्यलोक ने अपनी प्रकाशमान किरण तथा पृथिवी आदि लोक अपने आकर्षण अर्थात् पदार्थ खैंचने के सामर्थ्य से पुष्टता के साथ स्थिर करके धारण किये हैं कि जिससे वे न पराणुदे अपने-अपने भ्रमणचक्र अर्थात् घूमने के मार्ग को छोड़कर इधर-उधर हटके नहीं जा सकते हैं। (इमे चिदिन्द्र०) सूर्य्य लोक भूमि आदि लोकों को प्रकाश के धारण करने के हेतु से उनका रोकनेवाला है अर्थात् वह अपनी खैंचने की शक्ति से पृथिवी के किनारे और मेघ के जल के स्रोत को रोक रहा है। जैसे आकाश के बीच में फेंका हुआ मिट्टी का डेला पृथिवी की आकर्षण शक्ति से पृथिवी पर ही लौटकर आ पड़ता है, इसी प्रकार दूर भी ठहरे हुए पृथिवी आदि लोकों को सूर्य्य ही ने आकर्षण शक्ति की खैंच से धारण कर रखा है। इससे यही सूर्य्य बड़ा भारी आकर्षण प्रकाश और वर्षा का निमित्त है। (इन्द्रः०) यही सूर्य्य भूमि आदि लोकों में ठहरे हुए रस और मेघ को भेदन करनेवाला है। भौतिक वायु के विषय में वायवा याहि० इस मन्त्र की व्याख्या में जो प्रमाण कहे हैं, वे यहाँ भी जानना चाहिये॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में परमेश्वर ने प्राप्त होने योग्य और प्राप्त करानेवाले इन दो पदार्थों का प्रकाश किया है॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथोक्थप्रकाशितपदार्थानां वृद्धिरक्षणनिमित्तमुपदिश्यते।

Anvay:

इमे सुता इन्दवो हि यतो वान्तौ सहचारिणाविन्द्रवायू प्रकाशन्ते तौ चोपागतमुपागच्छतस्ततः प्रयोभिरन्नादिभिः पदार्थैः सह सर्वे प्राणिनः सुखान्युशन्ति कामयन्ते॥४॥

Word-Meaning: - (इन्द्रवायू) इमौ प्रत्यक्षौ सूर्य्यपवनौ। इन्द्रे॑ण रोच॒ना दि॒वो दृह्ळानि॑ दृंहि॒तानि॑ च। स्थि॒राणि॒ न प॑रा॒णुदे॑॥(ऋ०८.१४.९) यथेन्द्रेण सूर्य्यलोकेन प्रकाशमानाः किरणा धृताः, एवं च स्वाकर्षणशक्त्या पृथिव्यादीनि भूतानि दृढानि पुष्टानि स्थिराणि कृत्वा दृंहितानि धारितानि सन्ति। (न पराणुदे) अतो नैव स्वस्वकक्षां विहायेतस्ततो भ्रमणाय समर्थानि भवन्ति। इ॒मे चि॑दिन्द्र॒ रोद॑सी अपा॒रे यत्सं॑गृ॒भ्णा म॑घवन् का॒शिरित्ते॑। (ऋ०३.३०.५) इमे चिदिन्द्र रोदसी रोधसी द्यावापृथिव्यौ विरोधनाद्रोधः (कूलं निरुणद्धि स्रोतः) कूलं रुजतेर्विपरीताल्लोष्टोऽविपर्य्ययेणापारे दूरपारे यत्संगृभ्णासि मघवन् काशिस्ते महान्। अह॒स्तमि॑न्द्र॒ संपि॑ण॒क्कुणा॑रुम्। (ऋ०३.३०.८) अहस्तमिन्द्र कृत्वा संपिण्ढि परिक्वणनं मेघम्। (निरु०६.१) यतोऽयं सूर्य्यलोको भूमिप्रकाशौ धारितवानस्ति, अत एव पृथिव्यादीनां निरोधं कुर्वन् पृथिव्यां मेघस्य च कूलं स्रोतश्चाकर्षणेन निरुणद्धि। यथा बाहुवेगेनाकाशे प्रतिक्षिप्तो लोष्ठो मृत्तिकाखण्डः पुनर्विपर्य्ययेणाकर्षणाद् भूमिमेवागच्छति, एवं दूरे स्थितानपि पृथिव्यादिलोकान् सूर्य्य एव धारयति। सोऽयं सूर्य्यस्य महानाकर्षः प्रकाशश्चास्ति। तथा वृष्टिनिमित्तोऽप्ययमेवास्ति। इन्द्रो वै त्वष्टा। (ऐ०ब्रा०६.१०) सूर्य्यो भूम्यादिस्थस्य रसस्य मेघस्य च छेत्तास्ति। एतानि भौतिकवायुविषयाणि ‘वायवायाहि०’ इति मन्त्रप्रोक्तानि प्रमाणान्यत्रापि ग्राह्याणि। (इमे सुताः) प्रत्यक्षभूताः पदार्थाः (उप) समीपम् (प्रयोभिः) तृप्तिकरैरन्नादिभिः पदार्थैः सह। प्रीञ् तर्पणे कान्तौ चेत्यस्मादौणादिकोऽसुन् प्रत्ययः। (आगतम्) आगच्छतः। लोट्मध्यमद्विवचनम्। बहुलं छन्दसीति शपो लुक्। अनुदात्तोपदेशेत्यनुनासिकलोपः। (इन्दवः) जलानि क्रियामया यज्ञाः प्राप्तव्या भोगाश्च। इन्दुरित्युदकनामसु पठितम्। (निघं०१.१२) यज्ञनामसु। (निघं०३.१७) पदनामसु च। (निघं०५.४) (वाम्) तौ (उशन्ति) प्रकाशन्ते (हि) यतः॥४॥
Connotation: - अस्मिन्मन्त्रे प्राप्यप्रापकपदार्थानां प्रकाशः कृत इति॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात परमेश्वराकडून प्राप्य व प्रापक या दोन पदार्थांना प्रकट केलेले आहे.