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उद॑पप्तद॒सौ सूर्य॑: पु॒रु विश्वा॑नि॒ जूर्व॑न्। आ॒दि॒त्यः पर्व॑तेभ्यो वि॒श्वदृ॑ष्टो अदृष्ट॒हा ॥

English Transliteration

ud apaptad asau sūryaḥ puru viśvāni jūrvan | ādityaḥ parvatebhyo viśvadṛṣṭo adṛṣṭahā ||

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Pad Path

उत्। अ॒प॒प्त॒त्। अ॒सौ। सूर्यः॑। पु॒रु। विश्वा॑नि। जूर्व॑न्। आ॒दि॒त्यः। पर्व॑तेभ्यः। वि॒श्वऽदृ॑ष्टः। अ॒दृ॒ष्ट॒ऽहा ॥ १.१९१.९

Rigveda » Mandal:1» Sukta:191» Mantra:9 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:15» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर सूर्य के दृष्टान्त से ही उक्त विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! जैसे (असौ) यह (सूर्यः) सूर्यमण्डल (विश्वानि) समस्त अन्धकारजन्य दुःखों को (पुरु) बहुत (जूर्वन्) विनाश करता हुआ (उत्, अपप्तन्) उदय होता है और जैसे (आदित्यः) आदित्य सूर्य (पर्वतेभ्यः) पर्वत वा मेघों से उदय को प्राप्त होता है वैसे (अदृष्टहा) गुप्त विषों को विनाश करनेवाला (विश्वदृष्टः) सभों ने देखा हुआ विष हरनेवाला वैद्य विष को निवृत्त करने का प्रयत्न करे ॥ ९ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सविता अपने प्रकाश से सब पदार्थों को प्राप्त होता है, वैसे विषहरणशील वैद्य जन विषसंयुक्त पवन आदि पदार्थों को हरते और प्राणियों को सुखी करते हैं ॥ ९ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सूर्यदृष्टान्तेनैवोक्तविषयमाह ।

Anvay:

हे विद्वन् यथाऽसौ सूर्यो विश्वानि पुरु जूर्वन्नुदपप्तद्यथादित्यः पर्वतेभ्य उदपप्तत्तथाऽदृष्टहा विश्वदृष्टो भिषग्विषनिवारणे प्रयतेत ॥ ९ ॥

Word-Meaning: - (उत्) (अपप्तत्) (असौ) (सूर्यः) सविता (पुरु) बहु (विश्वानि) सर्वाणि (जूर्वन्) विनाशयन् (आदित्यः) (पर्वतेभ्यः) मेघेभ्यः शैलेभ्यो वा (विश्वदृष्टः) सर्वैर्दृष्टः (अदृष्टहा) यो गुप्तान् विषान् हन्ति सः ॥ ९ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सविता स्वप्रकाशेन सर्वान् पदार्थान् प्राप्नोति तथा विषसंपृक्तवाय्वादिपदार्थान् विषहरणशीला वैद्या हरन्ति प्राणिनः सुखयन्ति च ॥ ९ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य आपल्या प्रकाशाने सर्व पदार्थ प्रकाशित करतो तसे विषहरणशील वैद्य विषयुक्त वायू दूर करतो व प्राण्यांना सुखी करतो. ॥ ९ ॥