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अ॒स्य श्लोको॑ दि॒वीय॑ते पृथि॒व्यामत्यो॒ न यं॑सद्यक्ष॒भृद्विचे॑ताः। मृ॒गाणां॒ न हे॒तयो॒ यन्ति॑ चे॒मा बृह॒स्पते॒रहि॑मायाँ अ॒भि द्यून् ॥

English Transliteration

asya śloko divīyate pṛthivyām atyo na yaṁsad yakṣabhṛd vicetāḥ | mṛgāṇāṁ na hetayo yanti cemā bṛhaspater ahimāyām̐ abhi dyūn ||

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Pad Path

अ॒स्य। श्लोकः॑। दि॒वि। ई॒य॒ते॒। पृ॒थि॒व्याम्। अत्यः॑। न। यं॒स॒त्। य॒क्ष॒ऽभृत्। विऽचे॑ताः। मृ॒गाणा॑म्। न। हे॒तयः॑। यन्ति॑। च॒। इ॒माः। बृह॒स्पतेः॑। अहि॑ऽमायान्। अ॒भि। द्यून् ॥ १.१९०.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:190» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:12» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (अस्य) इस आप्त विद्वान् की (श्लोकः) वाणी और (पृथिव्याम्) पृथिवी पर (अत्यः) घोड़ा (न) जैसे (दिवि) दिव्य व्यवहार में (ईयते) जाता है तथा जो (यक्षभृत्) पूज्य विद्वानों को धारण करनेवाला (विचेताः) जिसकी नाना प्रकार की बुद्धि वह विद्वान् (मृगाणाम्) मृगों की (हेतयः) गतियों के (न) समान (यंसत्) उत्तम ज्ञान देवे (च) और जो (इमाः) ये (बृहस्पते) परम विद्वान् की वाणी (अभि, द्यून्) सब ओर से वर्त्तमान दिनों में (अहिमायान्) मेघ की माया के समान जिनकी बुद्धि उन सज्जनों को (यन्ति) प्राप्त होतीं उन सभों का मनुष्य सेवन करें ॥ ४ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो दिव्य विद्या और प्रज्ञाशील विद्वानों की सेवा करता है, वह मेघ के डंग-डमालयुक्त दिनों के समान वर्त्तमान अविद्यायुक्त मनुष्यों को प्रकाश को सविता जैसे वैसे विद्या देकर पवित्र कर सकता है ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मनुष्या अस्याप्तस्य श्लोकः पृथिव्यामत्यो न दिवीयते। तथा यक्षभृद्विचेता विद्वान् मृगाणां हेतयो न यंसत् याश्चेमा बृहस्पतेर्वाचोऽभिद्यूनहिमायान् यन्ति तान् सर्वान् मनुष्याः सेवन्ताम् ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (अस्य) विदुषः (श्लोकः) वाणी (दिवि) दिव्ये व्यवहारे (ईयते) गच्छति (पृथिव्याम्) भूमौ (अत्यः) अश्वः (न) इव (यंसत्) यच्छेत् (यक्षभृत्) यक्षान् पूज्यान् विदुषो बिभर्त्ति सः (विचेताः) विविधाश्चेताः प्रज्ञा यस्य। चेत इति प्रज्ञाना०। निघं० ३। ९। (मृगाणाम्) (न) इव (हेतयः) गतयः (यन्ति) गच्छन्ति (च) (इमाः) (बृहस्पतेः) परमविदुषः (अहिमायान्) अहेर्मेघस्य माया इव माया प्रज्ञा येषां तान् (अभि, द्यून्) अभितो वर्त्तमानान् दिवसान् ॥ ४ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यो दिव्यविद्याप्रज्ञाशीलान् विदुषः सेवते स मेघाडम्बरयुक्तानि दिनानीव वर्त्तमानानविद्यायुक्तान्मनुष्यान् प्रकाशं सवितेव विद्यां दत्त्वा पवित्रयितुं शक्नोति ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो दिव्य विद्या प्रज्ञाशील विद्वानांची सेवा करतो तो मेघाच्या अंधकारयुक्त दिनाप्रमाणे असणाऱ्या अविद्यायुक्त माणसांना सूर्याप्रमाणे विद्येचा प्रकाश देऊन पवित्र करतो. ॥ ४ ॥