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उप॑स्तुतिं॒ नम॑स॒ उद्य॑तिं च॒ श्लोकं॑ यंसत्सवि॒तेव॒ प्र बा॒हू। अ॒स्य क्रत्वा॑ह॒न्यो॒३॒॑ यो अस्ति॑ मृ॒गो न भी॒मो अ॑र॒क्षस॒स्तुवि॑ष्मान् ॥

English Transliteration

upastutiṁ namasa udyatiṁ ca ślokaṁ yaṁsat saviteva pra bāhū | asya kratvāhanyo yo asti mṛgo na bhīmo arakṣasas tuviṣmān ||

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Pad Path

उप॑ऽस्तुतिम्। नम॑सः। उत्ऽय॑तिम्। च॒। श्लोक॑म्। यं॒स॒त्। स॒वि॒ताऽइ॑व। प्र। बा॒हू इति॑। अ॒स्य। क्रत्वा॑। अ॒ह॒न्यः॑। यः। अस्ति॑। मृ॒गः। न। भी॒मः। अ॒र॒क्षसः॒। तुवि॑ष्मान् ॥ १.१९०.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:190» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:12» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (यः) जो (नमसः) नम्रजन की (उपस्तुतिम्) प्राप्त हुई प्रशंसा (उद्यतिम्) उद्यम और (श्लोकम्) सत्य वाणी को तथा (सवितेव) सूर्य से जल जैसे भूगोलों को वैसे (बाहू, च) अपनी भुजाओं को भी (प्रयंसत्) प्रेरणा देवे, (अस्य) इस (अरक्षसः) श्रेष्ठ पुरुष की (क्रत्वा) उत्तम बुद्धि के साथ जो (अहन्यः) दिन में प्रसिद्ध (अस्ति) है वह (मृगः) सिंह के (न) समान वीर (भीमः) भयङ्कर (तुविष्मान्) बहुत जिसके बलवान् वीर पुरुष विद्यमान हों ऐसा होता है ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जिसके सूर्यप्रकाश के तुल्य विद्या, कीर्त्ति, उद्यम, प्रज्ञा और बल हों, वह सत्य वाणीवाला सबको सत्कार करने योग्य है ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

यो नमस उपस्तुतिमुद्यतिं श्लोकं सवितेव बाहू च प्रयंसत्। अस्यारक्षसः क्रत्वा सह योऽहन्योऽस्ति स मृगो न भीमस्तुविष्मान् भवति ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (उपस्तुतिम्) उपगतां प्रशंसाम् (नमसः) नम्रस्य (उद्यतिम्) उद्यमम् (च) (श्लोकम्) सत्यां वाणीम् (यंसत्) प्रेरयेत् (सवितेव) यथा भूगोलान् सूर्यः (प्र) (बाहू) भुजौ (अस्य) (क्रत्वा) प्रज्ञया (अहन्यः) अहनि भवः (यः) (अस्ति) (मृगः) सिंहः (न) इव (भीमः) भयङ्करः (अरक्षसः) कुटिलस्योत्तमस्य (तुविष्मान्) तुविषो बहवो बलवन्तो वीरा विद्यन्ते यस्य सः ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यस्य सूर्यप्रकाशवद्विद्याकीर्त्युद्यमप्रज्ञाबलानि स्युः स सत्यवाक् सर्वैः सेवनीयः ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! ज्याची सूर्यप्रकाशाप्रमाणे विद्या, कीर्ती, उद्योग, प्रज्ञा व बल असेल त्या सत्यवचनीचा सर्वांनी सत्कार करावा. ॥ ३ ॥