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तमृ॒त्विया॒ उप॒ वाच॑: सचन्ते॒ सर्गो॒ न यो दे॑वय॒तामस॑र्जि। बृह॒स्पति॒: स ह्यञ्जो॒ वरां॑सि॒ विभ्वाभ॑व॒त्समृ॒ते मा॑त॒रिश्वा॑ ॥

English Transliteration

tam ṛtviyā upa vācaḥ sacante sargo na yo devayatām asarji | bṛhaspatiḥ sa hy añjo varāṁsi vibhvābhavat sam ṛte mātariśvā ||

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Pad Path

तम्। ऋ॒त्वियाः॑। उप॑। वाचः॑। स॒च॒न्ते॒। सर्गः॑। न। यः। दे॒व॒ऽय॒ताम्। अस॑र्जि। बृह॒स्पतिः॑। सः। हि। अञ्जः॑। वरां॑सि। विऽभ्वा॑। अभ॑वत्। सम्। ऋ॒ते। मा॒त॒रिश्वा॑ ॥ १.१९०.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:190» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:12» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (यः) जो (मातरिश्वा) पवन के समान (ऋते) सत्य व्यवहार में (अञ्जः) सभों को कामना करने योग्य (बृहस्पतिः) अनन्त वेदवाणी का पालनेवाला (विभ्वा) व्यापक परमात्मा ने बनाया हुआ (समभवत्) अच्छे प्रकार हो और जो (वरांसि) उत्तम कर्मों को करनेवाला हो (स, हि) वही (देवयताम्) अपने को विद्वान् करते हुओं के बीच (असर्जि) सिद्ध किया जाता है (तम्) उसका (ऋत्वियाः) जो ऋतु समय के योग्य होती वे (वाचः) विद्या सुशिक्षायुक्त वाणी (सर्गः) संसार के (न) समान ही (उप, सचन्ते) सम्बन्ध करती हैं ॥ २ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे जल नीचे मार्ग से जाकर गढ़ेले में ठहरता वैसे जिसको विद्या शिक्षा प्राप्त होती हैं वह अभिमान छोड़के नम्र हो विद्याशय और उचित कहनेवाला प्रसिद्ध हो, जैसे सर्वत्र व्याप्त ईश्वर ने यथायोग्य विविध प्रकार का जगत् बनाया, वैसे विद्वानों की सेवा करनेवाला समस्त काम करनेवाला हो ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

यो मातरिश्वेव ऋतेऽञ्जो बृहस्पतिर्विभ्वा सृष्टः समभवत् यो वरांसि कृतवान् स्यात् स हि देवयतामसर्जि तमृत्वियां वाचः सर्गो नोप सचन्ते ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (तम्) (ऋत्वियाः) या ऋतुमर्हन्ति ताः (उप) (वाचः) विद्याशिक्षायुक्ता वाणीः (सचन्ते) समवयन्ति (सर्गः) सृष्टिः (न) इव (यः) (देवयताम्) आत्मनो देवान् विदुषः कुर्वताम् (असर्जि) सृज्यते (बृहस्पतिः) बृहत्या वेदवाचः पालयिता (सः) (हि) (अञ्जः) सर्वैः कमनीयः (वरांसि) वराणि (विभ्वा) विभुना व्यापकेन (अभवत्) भवेत् (सम्) (ऋते) सत्ये (मातरिश्वा) वायुरिव ॥ २ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथोदकं निम्नमार्गेण गत्वा निम्नस्थले स्थिरं भवति तथा यं विद्याशिक्षे आप्नुतस्सोऽभिमानं विहाय नम्रो भूत्वा विद्याशयोऽस्तूचितवक्ता प्रसिद्धश्च स्यात्। यथा सर्वत्र व्यापकेनेश्वरेण यथायोग्यं विविधं जगन्निर्मितं तथा विद्वत्सेवको विश्वकर्मा स्यात् ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसे जल उताराकडे प्रवाहित होते, खाचखळग्यात स्थिरावते, तसे ज्याला विद्या प्राप्त होते त्याने अभिमानाचा त्याग करावा व नम्र बनावे. विद्येचे आगार बनून औचित्यपूर्ण वागावे. जसे सर्वत्र व्यापक ईश्वराने विविध प्रकारचे जग निर्माण केलेले आहे, तशी विद्वानांची सेवा करून संपूर्णपणे कार्यशील बनावे. ॥ २ ॥