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य ई॒ङ्खय॑न्ति॒ पर्व॑तान् ति॒रः स॑मु॒द्रम॑र्ण॒वम्। म॒रुद्भि॑रग्न॒ आ ग॑हि॥

English Transliteration

ya īṅkhayanti parvatān tiraḥ samudram arṇavam | marudbhir agna ā gahi ||

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Pad Path

ये। ई॒ङ्खय॑न्ति। पर्व॑तान्। ति॒रः। स॒मु॒द्रम्। अ॒र्ण॒वम्। म॒रुत्ऽभिः॑। अ॒ग्ने॒। आ। ग॒हि॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:19» Mantra:7 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:37» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उक्त पवन किन कार्य्यों के हेतु होते हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - (ये) जो वायु (पर्वतान्) मेघों को (ईङ्खयन्ति) छिन्न-भिन्न करते और वर्षाते हैं, (अर्णवम्) समुद्र का (तिरः) तिरस्कार करते वा (समुद्रम्) अन्तरिक्ष को जल से पूर्ण करते हैं, उन (मरुद्भिः) पवनों के साथ (अग्ने) अग्नि अर्थात् बिजुली (आगहि) प्राप्त होती अर्थात् सन्मुख आती जाती है॥७॥
Connotation: - वायु के संयोग से ही वर्षा होती है और जल के कण वा रेणु अर्थात् सब पदार्थों के अत्यन्त छोटे-छोटे कण पृथिवी से अन्तरिक्ष को जाते तथा वहाँ से पृथिवी को आते हैं, उनके साथ वा उनके निमित्त से बिजुली उत्पन्न होती और बद्दलों में छिप जाती है॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते किंकर्महेतवः सन्तीत्युपदिश्यते।

Anvay:

ये वायवः पर्वतादीनीङ्खयन्ति, अर्णवं तिरस्कुर्वन्ति समुद्रं प्रपूरयन्ति तैर्मरुद्भिः सहाग्नेऽयमग्निर्विद्युदागह्यागच्छति॥७॥

Word-Meaning: - (ये) वायवः (ईङ्खयन्ति) छेदयन्ति निपातयन्ति (पर्वतान्) मेघान्। पर्वत इति मेघनामसु पठितम्। (निघं०१.१०) (तिरः) तिरस्करणे (समुद्रम्) सम्यगुद्द्रवन्त्यापो यस्मिन् तदन्तरिक्षम्। समुद्र इत्यन्तरिक्षनामसु पठितम्। (निघं०१.३) (अर्णवम्) पृथिवीस्थं सागरम् (मरुद्भिः) उपर्य्यधोगमनशीलैर्वायुभिः (अग्ने) अग्निर्विद्युदाख्यः (आ) अभितः (गहि) प्राप्नोति। अत्र व्यत्ययो लडर्थे लोट् च॥७॥
Connotation: - वायुयोगेनैव वृष्टिर्भवति जलं रेणवश्चोपरि गत्वाऽऽगच्छन्ति, तैः सह तन्निमित्तेन वा विद्युदुत्पद्य गृह्यते॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - वायूच्या संयोगानेच वृष्टी होते व जलाचे रेणू अर्थात् सर्व पदार्थांचे छोटे छोटे कण पृथ्वीवरून अंतरिक्षात जातात तसेच तेथून पृथ्वीवर येतात. त्यांच्याबरोबर किंवा त्यांच्या निमित्ताने विद्युत निर्माण होते व मेघात लपते. ॥ ७ ॥