समि॑द्धो अ॒द्य रा॑जसि दे॒वो दे॒वैः स॑हस्रजित्। दू॒तो ह॒व्या क॒विर्व॑ह ॥
samiddho adya rājasi devo devaiḥ sahasrajit | dūto havyā kavir vaha ||
सम्ऽइ॑द्धः। अ॒द्य। रा॒ज॒सि॒। दे॒वः। दे॒वैः। स॒ह॒स्र॒ऽजि॒त्। दू॒तः। ह॒व्या। क॒विः। व॒ह॒ ॥ १.१८८.१
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब ग्यारह ऋचावाले एकसौ अट्ठासी सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में अग्नि के दृष्टान्त से राजगुणों का उपदेश करते हैं।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथाऽग्निदृष्टान्तेन राजगुणानाह ।
हे सहस्रजित् राजन् समिद्धइव देवैः सह देवः सहस्रजिद्दूतः कविस्त्वमद्य राजसि स त्वं हव्या वह ॥ १ ॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात अग्नीच्या दृष्टान्ताने राजा, अध्यापक, उपदेशक, स्त्री-पुरुष, ईश्वर व दाता यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे याच्या अर्थाची मागच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.