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यद॒पामोष॑धीनां परिं॒शमा॑रि॒शाम॑हे। वाता॑पे॒ पीब॒ इद्भ॑व ॥

English Transliteration

yad apām oṣadhīnām pariṁśam āriśāmahe | vātāpe pīva id bhava ||

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Pad Path

यत्। अ॒पाम्। ओष॑धीनाम्। प॒रिं॒शम्। आ॒ऽरि॒शाम॑हे। वाता॑पे। पीबः॑। इत्। भ॒व॒ ॥ १.१८७.८

Rigveda » Mandal:1» Sukta:187» Mantra:8 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:7» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (वातापे) पवन के समान सर्वपदार्थ व्यापक परमेश्वर ! हम लोग (अपाम्) जलों और (ओषधीनाम्) सोमादि ओषधियों के (यत्) जिस (परिंशम्) सब ओर से प्राप्त होनेवाले अन्न में विद्यमान अंश को (आरिशामहे) अच्छे प्रकार प्राप्त होते हैं उससे आप (पीबः) उत्तम वृद्धि करनेवाले (इत्) ही (भव) हूजिये ॥ ८ ॥
Connotation: - जल, अन्न और घृत के संस्कार से प्रशंसित अन्न और व्यञ्जन इलायची, मिरच वा घृत, दूध पदार्थों को उत्तम बनाकर उन पदार्थों के भोजन करनेवाले जन युक्त आहार और विहार से पुष्ट होवें ॥ ८ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे वातापे परमेश्वर वयमपामोषधीनां यत्परिंशमन्नमारिशामहे तेन त्वं पीब इद्भव ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (यत्) अन्नम् (अपाम्) जलानाम् (ओषधीनाम्) सोमाद्योषधीनाम् (परिंशम्) परितः सर्वतोंऽशं लेशम्। अत्र छान्दसो वर्णलोपो वेत्यलोपः। (आरिशामहे) समन्तात् प्राप्नुयाम। अत्र लिश गतावित्यस्य वर्णव्यत्ययेन लस्य स्थाने रेफादेशः। (वातापे) वातइव सर्वान् पदार्थान् व्याप्नोति तत्सम्बुद्धौ (पीबः) वृद्धिकरः (इत्) एव (भव) ॥ ८ ॥
Connotation: - जलान्नघृतसंस्कारेण प्रशस्तान्यन्नानि व्यञ्जनानि निर्माय भोक्तारो युक्ताहारविहारेण पुष्टा भवन्तु ॥ ८ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जल, अन्न व घृताच्या संस्काराने प्रशंसित अन्न व निरनिराळी व्यंजने बनवून भोजन करणाऱ्या लोकांनी युक्त आहार-विहाराने पुष्ट व्हावे. ॥ ८ ॥