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तव॒ त्ये पि॑तो॒ रसा॒ रजां॒स्यनु॒ विष्ठि॑ताः। दि॒वि वाता॑ इव श्रि॒ताः ॥

English Transliteration

tava tye pito rasā rajāṁsy anu viṣṭhitāḥ | divi vātā iva śritāḥ ||

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Pad Path

तव॑। त्ये। पि॒तो॒ इति॑। रसाः॑। रजां॑सि। अनु॑। विऽस्थि॑ताः। दि॒वि। वाताः॑ऽइव। श्रि॒ताः ॥ १.१८७.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:187» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:6» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (पितो) अन्नव्यापिन् परमात्मन् ! (तव) उस अन्न के बीच जो (रसाः) स्वादु खट्टा मीठा तीखा चरपरा आदि छः प्रकार के रस (दिवि) अन्तरिक्ष में (वाताइव) पवनों के समान (श्रिताः) आश्रय को प्राप्त हो रहे हैं (त्ये) वे (रजांसि) लोकलोकान्तरों को (अनु, विष्ठिताः) पीछे प्रविष्ट होते हैं ॥ ४ ॥
Connotation: - इस संसार में परमात्मा की व्यवस्था से लोकलोकान्तरों में भूमि, जल और पवन के अनुकूल रसादि पदार्थ होते हैं किन्तु सब पदार्थ सब जगह प्राप्त नहीं हो सकते ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे पितो तव तस्यान्नस्य मध्ये ये रसा दिवि वाताइव श्रितास्त्ये रजांस्यनु विष्ठिता भवन्ति ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (तव) तस्य (त्ये) ते (पितो) अन्नव्यापिन् परमात्मन् (रसाः) स्वाद्वन्नादिषड्विधाः (रजांसि) लोकान् (अनु) (विष्ठिताः) विशेषेण स्थिताः (दिवि) अन्तरिक्षे (वाताइव) (श्रिताः) आश्रिताः सेवमानाः ॥ ४ ॥
Connotation: - अस्मिन् संसारे परमात्मव्यवस्थया लोकलोकान्तरे भूमिजलपवनानुकूला रसादयो भवन्ति नहि सर्वे सार्वत्रिका इति भावः ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या जगात परमेश्वराच्या व्यवस्थेनुसार लोकलोकान्तरात भूमी, जल व वायूच्या अनुकूल रस इत्यादी पदार्थ असतात परंतु सर्व पदार्थ सर्व स्थानी प्राप्त होऊ शकत नाहीत. ॥ ४ ॥