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उ॒त न॑ ईं॒ त्वष्टा ग॒न्त्वच्छा॒ स्मत्सू॒रिभि॑रभिपि॒त्वे स॒जोषा॑:। आ वृ॑त्र॒हेन्द्र॑श्चर्षणि॒प्रास्तु॒विष्ट॑मो न॒रां न॑ इ॒ह ग॑म्याः ॥

English Transliteration

uta na īṁ tvaṣṭā gantv acchā smat sūribhir abhipitve sajoṣāḥ | ā vṛtrahendraś carṣaṇiprās tuviṣṭamo narāṁ na iha gamyāḥ ||

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Pad Path

उ॒त। नः॒। ई॒म्। त्वष्टा॑। आ। ग॒न्तु॒। अच्छ॑। स्मत्। सू॒रिऽभिः॑। अ॒भि॒ऽपि॒त्वे। स॒ऽजोषाः॑। आ। वृ॒त्र॒ऽहा। इन्द्रः॑। च॒र्ष॒णि॒ऽप्राः। तु॒विःऽत॑मः। न॒राम्। नः॒। इ॒ह। ग॑म्याः ॥ १.१८६.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:186» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:5» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब मेघ और सूर्य के दृष्टान्त से उक्त विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे विद्वान् ! जैसे (इह) यहाँ (वृत्रहा) मेघ का हननेवाला (चर्षणिप्राः) मनुष्यों को सुखों से पूर्ण करनेवाला (तुविष्टमः) अतीव बली (त्वष्टा) प्रकाशमान (इन्द्रः) सूर्य (ईम्) जल को वर्षाता है वैसे तुम (नराम्) सब मनुष्यों के बीच (नः) हम लोगों को (आ, गम्याः) अच्छे प्रकार प्राप्त होओ (उत) और (स्मत्) प्रशंसायुक्त (अभिपित्वे) सब ओर से पाने योग्य व्यवहार में (सजोषाः) समान प्रीति रखनेवाले आप (सूरिभिः) विद्वानों के साथ (नः) हम लोगों के प्रति (अच्छ, आ, गन्तु) अच्छे प्रकार आइये ॥ ६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो सूर्य के समान विद्या का प्रकाश कराते हैं, और अपने आत्मा के तुल्य सबको मान सुखी करते हैं, वे बलवान् होते हैं ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मेघसूर्यदृष्टान्तेनोक्तविषयमाह ।

Anvay:

हे विद्वन् यथेह वृत्रहा चर्षणिप्रास्तुविष्टमस्त्वष्टेन्द्र ईं वर्षयति तथा त्वं नरां न आ गम्या उत स्मदभिपित्वे सजोषा भवान्त्सूरिभिर्नोऽच्छागन्तु ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (उत) (नः) अस्मान् (ईम्) जलम् (त्वष्टा) प्रकाशमानः (आ) (गन्तु) आगच्छन्तु (अच्छ) सम्यक् (स्मत्) प्रशंसायाम् (सूरिभिः) विद्वद्भिः (अभिपित्वे) अभितः प्राप्तव्ये (सजोषाः) समानप्रीतिः (आ) (वृत्रहा) मेघहन्ता (इन्द्रः) सूर्यः (चर्षणिप्राः) यश्चर्षणीन् मनुष्यान् सुखैः पिपर्त्ति सः (तुविष्टमः) अतिशयेन बली (नराम्) नराणाम् (नः) अस्मान् (इह) (गम्याः) गच्छेः ॥ ६ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये सूर्यवद्विद्यां प्रकाशयन्ति स्वात्मवत् सर्वान् मत्वा सुखयन्ति ते बलवन्तो जायन्ते ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे सूर्याप्रमाणे विद्येचा प्रकाश करवितात व आपल्या आत्म्याप्रमाणे सर्वांना मानतात व सुखी करतात ते बलवान असतात. ॥ ६ ॥