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इ॒यं सा वो॑ अ॒स्मे दीधि॑तिर्यजत्रा अपि॒प्राणी॑ च॒ सद॑नी च भूयाः। नि या दे॒वेषु॒ यत॑ते वसू॒युर्वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥

English Transliteration

iyaṁ sā vo asme dīdhitir yajatrā apiprāṇī ca sadanī ca bhūyāḥ | ni yā deveṣu yatate vasūyur vidyāmeṣaṁ vṛjanaṁ jīradānum ||

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Pad Path

इ॒यम्। सा। वः॒। अ॒स्मे इति॑। दीधि॑तिः। य॒ज॒त्राः॒। अ॒पि॒ऽप्राणी॑। च॒। सद॑नी। च॒। भू॒याः॒। नि। या। दे॒वेषु॑। यत॑ते। व॒सु॒ऽयुः। वि॒द्याम॑। इ॒षम्। वृ॒जन॑म्। जी॒रऽदा॑नुम् ॥ १.१८६.११

Rigveda » Mandal:1» Sukta:186» Mantra:11 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:5» Mantra:6 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (यजत्राः) विद्वानों के पूजनेवालो ! (या) जो (वसुयुः) धनों को चाहनेवाली अर्थात् जिससे धनादि उत्तम पदार्थ सिद्ध होते हैं उस विद्या की उत्तम दीप्ति कान्ति (देवेषु) विद्वानों में (नि, यतते) निरन्तर यत्न करती है, कार्यकारिणी होती है, (सा, इयम्) सो यह (वः) तुम्हारी (दीधितिः) उक्ति कान्ति (अस्मे) हमारे लिये (अपिप्राणी) निश्चित प्राण बल की देनेवाली (च) और (सदनी) दुःख विनाशने से सुख देनेवाली (च) भी (भूयाः) हो जिससे हम लोग (इषम्) इच्छासिद्धि वा अन्नादि पदार्थ (वृजनम्) बल और (जीरदानुम्) जीवन को (विद्याम) प्राप्त होवें ॥ ११ ॥
Connotation: - विद्या ही मनुष्यों को सुख देनेवाली है, जिसने विद्या धन न पाया वह भीतर से सदा दरिद्रसा वर्त्तमान रहता है ॥ ११ ॥इस सूक्त में विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इसके अर्थ की पिछले सूक्तार्थ के साथ सङ्गति जानना चाहिये ॥यह एकसौ छयासीवाँ सूक्त और पाँचवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे यजत्रा या वसूयुर्दीधितिर्देवेषु नि यतते सेयं वो दीधितिरस्मे अपिप्राणी च सदनी च भूयाः। यतो वयमिषं वृजनं जीरदानुञ्ज विद्याम ॥ ११ ॥

Word-Meaning: - (इयम्) वेदविद्या (सा) (वः) युष्माकम् (अस्मे) अस्मभ्यम् (दीधितिः) विद्याप्रदीप्तिः (यजत्राः) विदुषां पूजकाः (अपिप्राणी) निश्चितप्राणबलप्रदा (च) (सदनी) दुःखविनाशनेन सुखप्रदा (च) (भूयाः) (नि) (या) (देवेषु) विद्वत्सु (यतते) यत्नं करोति (वसूयुः) वसूनि धनानीच्छुः (विद्याम्) (इषम्) (वृजनम्) (जीरदानुम्) ॥ ११ ॥
Connotation: - विद्यैव मनुष्याणां सुखप्रदा येन विद्याधनं न प्राप्तं सोऽन्तः सदा दरिद्र इव वर्त्तते ॥ ११ ॥अस्मिन् सूक्ते विद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥इति षडशीत्युत्तरं शततमं सूक्तं पञ्चमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - विद्याच माणसाला सुख देणारी आहे. ज्याने विद्याधन प्राप्त केले नाही तो आतून सदैव दरिद्री असतो. ॥ ११ ॥