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अ॒स्मे ऊ॒ षु वृ॑षणा मादयेथा॒मुत्प॒णीँर्ह॑तमू॒र्म्या मद॑न्ता। श्रु॒तं मे॒ अच्छो॑क्तिभिर्मती॒नामेष्टा॑ नरा॒ निचे॑तारा च॒ कर्णै॑: ॥

English Transliteration

asme ū ṣu vṛṣaṇā mādayethām ut paṇīm̐r hatam ūrmyā madantā | śrutam me acchoktibhir matīnām eṣṭā narā nicetārā ca karṇaiḥ ||

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Pad Path

अ॒स्मे इति॑। ऊँ॒ इति॑। सु। वृ॒ष॒णा॒। मा॒द॒ये॒था॒म्। उत् प॒णीन्। ह॒त॒म्। ऊ॒र्म्या। मद॑न्ता। श्रु॒तम्। मे॒। अच्छो॑क्तिऽभिः। म॒ती॒नाम्। एष्टा॑। न॒रा॒। निऽचे॑तारा। च॒। कर्णैः॑ ॥ १.१८४.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:184» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:1» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (वृषणा) बलवान् (निचेतारा) नित्य ज्ञानवान् और ज्ञान के देनेवाले (नरा) अग्रगामी विद्वानो ! तुम (पणीन्) प्रशंसित व्यवहार करनेवाले (अस्मे) हम लोगों को (सु, मादयेथाम्) सुन्दरता से आनन्दित करो (ऊर्म्या) और रात्रि के साथ (मदन्ता) आनन्दित होते हुए तुम लोग दुष्टों का (उत्, हतम्) उद्धार करो अर्थात् उनको उस दुष्टता से बचाओ और (मतीनाम्) मनुष्यों की (अच्छोक्तिभिः) अच्छी उक्तियों अर्थात् सुन्दर वचनों से जो मैं (एष्टा) विवेक करनेवाला हूँ उस (च, मे) मेरी भी सुन्दर उक्ति को (कर्णैः) कानों से (उ, श्रुतम्) तर्क-वितर्क करने के साथ सुनो ॥ २ ॥
Connotation: - जैसे अध्यापक और उपदेश करनेवाले जन पढ़ाने और उपदेश सुनाने योग्य पुरुषों को वेदवचनों से अच्छे प्रकार ज्ञान देकर विद्वान् करते हैं, वैसे उनके वचन को सुनके वे सब काल में सबको आनन्दित करने योग्य हैं ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे वृषणा ! निचेतारा नरा युवां पणीनस्मे सुमादयेथामूर्म्या सह मदन्ता दुष्टानुद्धतं मतीनामच्छोक्तिभिर्योहमेष्टा तस्य च मे सुष्ठूक्तिं कर्णैरु श्रुतम् ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (अस्मे) अस्मान् (उ) वितर्के (सु) शोभने (वृषणा) बलिष्ठौ (मादयेथाम्) आनन्दयेथाम् (उत्) (पणीन्) प्रशस्तव्यवहारकर्त्रीन् (हतम्) (ऊर्म्या) रात्र्या सह। ऊर्म्येति रात्रिना०। निघं० १। ७। (मदन्ता) आनन्दन्तौ (श्रुतम्) शृणुतम् (मे) मम (अच्छोक्तिभिः) शोभनैर्वचोभिः (मतीनाम्) मनुष्याणाम् (एष्टा) पर्य्यालोचकः (नरा) नेतारौ (निचेतारा) नित्यं ज्ञानवन्तौ ज्ञापकौ (च) (कर्णैः) श्रौत्रैः ॥ २ ॥
Connotation: - यथाऽध्यापकोपदेष्टारावध्येतॄनुपदेश्याँश्च वेदवचोभिः संज्ञाप्य विदुषः कुर्वन्ति तथा तद्वचः श्रुत्वा तौ सदा सर्वैरानन्दनीयौ ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसे अध्यापक व उपदेशक शिकविणाऱ्या व उपदेश ऐकविण्यायोग्य पुरुषांना वेदवचनांनी चांगल्या प्रकारे ज्ञान देऊन विद्वान करतात तसे त्यांचे वचन ऐकून ते सर्वकाळी सर्वांना आनंदित करतात. ॥ २ ॥