Go To Mantra

ज॒म्भय॑तम॒भितो॒ राय॑त॒: शुनो॑ ह॒तं मृधो॑ वि॒दथु॒स्तान्य॑श्विना। वाचं॑वाचं जरि॒तू र॒त्निनीं॑ कृतमु॒भा शंसं॑ नासत्यावतं॒ मम॑ ॥

English Transliteration

jambhayatam abhito rāyataḥ śuno hatam mṛdho vidathus tāny aśvinā | vācaṁ-vācaṁ jaritū ratninīṁ kṛtam ubhā śaṁsaṁ nāsatyāvatam mama ||

Mantra Audio
Pad Path

ज॒म्भय॑तम्। अ॒भितः॑। राय॑तः। शुनः॑। ह॒तम्। मृधः॑। वि॒दथुः॑। तानि॑। अ॒श्वि॒ना॒। वाच॑म्ऽवाचम्। ज॒रि॒तुः। र॒त्निनी॑म्। कृ॒त॒म्। उ॒भा। शंस॑म्। ना॒स॒त्या॒। अ॒व॒त॒म्। मम॑ ॥ १.१८२.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:182» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:27» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:4


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (नासत्या) सत्य व्यवहार वर्त्तने और (अश्विना) विद्या बल में व्याप्त होनेवाले सज्जनो ! जो तुम (रायतः) भौंकते हुए मनुष्यभक्षी दुष्ट (शुनः) कुत्तों को (अभितः, जम्भयतम्) सब ओर से विनाशो तथा (मृधः) संग्रामों को (हतम्) विनाशो और (तानि) उन सब कामों को (विदथुः) जानते हो तथा (जरितुः) स्तुति प्रशंसा करनेवाले अध्यापक और उपदेशक से (रत्निनीम्) रमणीय (वाचंवाचम्) वाणी वाणी को जानते हो और (शंसम्) स्तुति (कृतम्) करो वे (उभा) दोनों तुम (मम) मेरी वाणी को (अवतम्) तृप्त करो ॥ ४ ॥
Connotation: - जिनका दुष्टों के बाँधने, शत्रुओं के जीतने और विद्वानों के उपदेश के स्वीकार करने में सामर्थ्य है, वे ही हम लोगों के रक्षक होते हैं ॥ ४ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे नासत्याश्विना यौ युवां शुनो रायतो दुष्टानभितो जम्भयतं मृधो हतं तानि विदथुर्जरितू रत्निनीं वाचंवाचञ्च विदथुः। शंसं कृतं तावुभा मम वाणीमवतम् ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (जम्भयतम्) विनाशयतम् (अभितः) सर्वतः (रायतः) शब्दयतः (शुनः) कुक्कुरान् (हतम्) नाशयतम् (मृधः) संग्रामान् (विदथुः) विजानीथः (तानि) वचांसि (अश्विना) विद्याबलव्यापिनौ (वाचंवाचम्) (जरितुः) स्तोतुरध्यापकादुपदेशकात् (रत्निनीम्) रमणीयाम् (कृतम्) कुरुतम् (उभा) (शंसम्) स्तुतिम् (नासत्या) अविद्यमानसत्यौ (अवतम्) (मम) ॥ ४ ॥
Connotation: - येषां दुष्टबन्धने शत्रुविजये विद्वदुपदेशस्वीकारे च सामर्थ्यमस्ति त एवास्माकं रक्षकाः सन्तु ॥ ४ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जे दुष्टांना बंधनात ठेवतात, शत्रूंना जिंकतात व विद्वानांचा उपदेश स्वीकारण्याचे ज्यांचे सामर्थ्य असते, तेच आपले रक्षक असतात. ॥ ४ ॥