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अभू॑दि॒दं व॒युन॒मो षु भू॑षता॒ रथो॒ वृष॑ण्वा॒न्मद॑ता मनीषिणः। धि॒यं॒जि॒न्वा धिष्ण्या॑ वि॒श्पला॑वसू दि॒वो नपा॑ता सु॒कृते॒ शुचि॑व्रता ॥

English Transliteration

abhūd idaṁ vayunam o ṣu bhūṣatā ratho vṛṣaṇvān madatā manīṣiṇaḥ | dhiyaṁjinvā dhiṣṇyā viśpalāvasū divo napātā sukṛte śucivratā ||

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Pad Path

अभू॑त्। इ॒दम्। व॒युन॑म्। ओ इति॑। सु। भू॒ष॒त॒। रथः॑। वृष॑ण्ऽवान्। मद॑त। म॒नी॒षि॒णः॒। धि॒य॒म्ऽजि॒न्वा। धिष्ण्या॑। वि॒श्पला॑वसू॒ इति॑। दि॒वः। नपा॑ता। सु॒ऽकृते॑। शुचि॑ऽव्रता ॥ १.१८२.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:182» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:27» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब एकसौ बयासीवें सूक्त का आरम्भ है। इसमें आरम्भ से विद्वानों के कार्य को कहते हैं ।

Word-Meaning: - (ओ) ओ (मनीषिणः) धीमानो ! जिनसे (इदम्) यह (वयुनम्) उत्तम ज्ञान (अभूत्) हुआ और (वृषण्वान्) यानों की वेग शक्ति को बाँधनेवाला (रथः) रथ हुआ उन (सुकृते) सुकर्मरूप शोभन मार्ग में (धियंजिन्वा) बुद्धि को तृप्त रखते (दिवः) विद्यादि प्रकाश के (नपाता) पवन से रहित (धिष्ण्या) दृढ़ प्रगल्भ (शुचिव्रता) पवित्र कर्म करने के स्वभाव से युक्त (विश्पलावसू) प्रजाजनों की पालना करने और वसानेवाले अध्यापक और उपदेशकों को तुम (सु, भूषत) सुशोभित करो और उनके सङ्ग से (मदत) आनन्दित होओ ॥ १ ॥
Connotation: - हे मनुष्यो वे श्रेष्ठ अध्यापक और उपदेशक नहीं है कि जिनके सङ्ग से प्रजा पालना, सुशीलता, ईश्वर, धर्म और शिल्प व्यवहार की विद्या न बढ़ें ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वत्कृत्यमाह ।

Anvay:

ओ मनीषिणो याभ्यामिदं वयुनमभूदुत्पन्नं स्यात्। वृषण्वान्नथश्चाभूतौ सुकृते धियंजिन्वा दिवो नपाता धिष्ण्या शुचिव्रता विश्पलावसू अध्यापकोपदेशकौ यूयं सुभूषत तत्सङ्गेन मदत ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (अभूत्) भवति (इदम्) (वयुनम्) प्रज्ञानम् (ओ) सम्बोधने (सु) (भूषत) अलंकुरुत। अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः। (रथः) यानम् (वृषण्वान्) अन्ययानानां वेगशक्तिबन्धयिता (मदत) आनन्दत। अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः। (मनीषिणः) मेधाविनः (धियंजिन्वा) यौ धियं प्रज्ञां जिन्वतः प्रीणीतस्तौ (धिष्ण्या) दृढौ प्रगल्भौ (विश्पलावसू) विशां पालयितारौ च तौ वासकौ (दिवः) प्रकाशस्य (नपाता) प्रपातरहितौ (सुकृते) शोभने मार्गे (शुचिव्रता) पवित्रकर्मशीलौ ॥ १ ॥
Connotation: - हे मनुष्या न तौ वराऽध्यापकोपदेशौ ययोः सङ्गेन प्रजापालनसुशीलतेश्वरधर्मशिल्पव्यवहारविद्या न वर्द्धेरन् ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विद्वानांच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणावे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो! ते श्रेष्ठ अध्यापक व उपदेशक नसतात ज्यांच्या संगतीने प्रजापालन, सुशीलता, ईश्वर, धर्म व शिल्पव्यवहाराची वाढ होत नाही. ॥ १ ॥