Go To Mantra

उ॒त स्या वां॒ रुश॑तो॒ वप्स॑सो॒ गीस्त्रि॑ब॒र्हिषि॒ सद॑सि पिन्वते॒ नॄन्। वृषा॑ वां मे॒घो वृ॑षणा पीपाय॒ गोर्न सेके॒ मनु॑षो दश॒स्यन् ॥

English Transliteration

uta syā vāṁ ruśato vapsaso gīs tribarhiṣi sadasi pinvate nṝn | vṛṣā vām megho vṛṣaṇā pīpāya gor na seke manuṣo daśasyan ||

Mantra Audio
Pad Path

उ॒त। स्या। वा॒म्। रुश॑तः। वप्स॑सः। गीः। त्रि॒ऽब॒र्हिषि॑। सद॑सि। पि॒न्व॒ते॒। नॄन्। वृषा॑। वा॒म्। मे॒घः। वृ॒ष॒णा॒। पी॒पा॒य॒। गोः। न। सेके॑। मनु॑षः। द॒श॒स्यन् ॥ १.१८१.८

Rigveda » Mandal:1» Sukta:181» Mantra:8 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:26» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:8


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर अध्यापकोपदेशक विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (वृषणा) दुष्टों की सामर्थ्य बाँधनेवाले अध्यापकोपदेशको ! (वाम्) तुम दोनों के (रुशतः) प्रकाशित (वप्ससः) रूप की जो (गीः) वाणी है (स्या) वह (त्रिबर्हिषि) तीन वेदवेत्ता वृद्ध जिसमें हैं उस (सदसि) सभा में (नॄन्) अग्रगन्ता मनुष्यों को (पिन्वते) सेवती है और (वाम्) तुम दोनों का जो (वृषा) सेचने में समर्थ (मेघः) मेघ के समान वाणी विषय (दशस्यन्) चाहे हुए फल को देता हुआ (गोः) पृथिवी के (सेके) सेचन में (न) जैसे वैसे अपने व्यवहार में (मनुषः) मनुष्यों की (पीपाय) उन्नति कराता है उसको (उत) भी हम सेवें ॥ ८ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्य जब सत्य कहते हैं तब उनके मुख की आकृति मलीन नहीं होती और जब झूठ कहते हैं तब उनका मुख मलीन हो जाता है। जैसे पृथिवी पर ओषधियों का बढ़ानेवाला मेघ है, वैसे जो सभासद् उपदेश करने योग्यों को सत्य भाषण से बढ़ाते हैं, वे सबके हितैषी होते हैं ॥ ८ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरध्यापकोपदेशकविषयमाह।

Anvay:

हे वृषणा वां रुशतो वप्ससो या गीः स्या त्रिबर्हिषि सदसि नॄन् पिन्वते तां वां वृषा मेघो दशस्यन् गोः सेके न च व्यवहारे मनुषः पीपाय तमुत वयं सेवेमहि ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (उत) अपि (स्या) सा (वाम्) युवयोः (रुशतः) प्रकाशितस्य (वप्ससः) सुरूपस्य (गीः) वाक् (त्रिबर्हिषि) त्रयो वेदवेत्तारो वृद्धा यस्यां तस्याम् (सदसि) सभायाम् (पिन्वते) सेवते (नॄन्) नायकान् मनुष्यान् (वृषा) (वाम्) युवयोः (मेघः) मेघ इव (वृषणा) दुष्टसामर्थ्यबन्धकौ (पीपाय) आप्याययति वर्द्धयति (गोः) पृथिव्याः (न) इव (सेके) सिञ्चने (मनुषः) मनुष्यान् (दशस्यन्) अभिमतं प्रयच्छन् ॥ ८ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्या यदा सत्यं वदन्ति तदा मुखाऽऽकृतिर्मलीनी न भवति यदा मिथ्या वदन्ति तदा मुखं मलीनं जायते। यथा पृथिव्यामौषधानां वर्द्धको मेघस्तथा ये सभासद उपदेश्यांश्च सत्यभाषणेन वर्द्धयन्ति ते सर्वेषां हितैषिणो भवन्ति ॥ ८ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसे जेव्हा खरे बोलतात तेव्हा त्यांच्या मुखाची आकृती मलीन होत नाही व जेव्हा खोटे बोलतात तेव्हा त्यांचे मुख मलीन होते. जसा मेघ पृथ्वीवर औषधी वाढविणारा असतो तसे सभासद उपदेश करण्यायोग्य लोकांना सत्य वचनाने उन्नत करतात, ते सर्वांचे हितैषी असतात. ॥ ८ ॥