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प्र यद्वहे॑थे महि॒ना रथ॑स्य॒ प्र स्प॑न्द्रा याथो॒ मनु॑षो॒ न होता॑। ध॒त्तं सू॒रिभ्य॑ उ॒त वा॒ स्वश्व्यं॒ नास॑त्या रयि॒षाच॑: स्याम ॥

English Transliteration

pra yad vahethe mahinā rathasya pra syandrā yātho manuṣo na hotā | dhattaṁ sūribhya uta vā svaśvyaṁ nāsatyā rayiṣācaḥ syāma ||

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Pad Path

प्र। यत्। वहे॑थे॒ इति॑। म॒हि॒ना। रथ॑स्य। प्र। स्प॒न्द्रा॒। या॒थः॒। मनु॑षः। न। होता॑। ध॒त्तम्। सू॒रिऽभ्यः॑। उ॒त। वा॒। सु॒ऽअश्व्य॑म्। नास॑त्या। र॒यि॒ऽसाचः॑। स्या॒म॒ ॥ १.१८०.९

Rigveda » Mandal:1» Sukta:180» Mantra:9 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:24» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (स्पन्द्रा) उत्तम चाल चलने और (नासत्या) सत्य स्वभावयुक्त स्त्री-पुरुषो ! (यत्) जो तुम (होता) दान करनेवाले (मनुषः) मनुष्य के (न) समान (महिना) बड़प्पन के साथ (रथस्य) रमण करने योग्य विमानादि रथ को (प्रवहेथे) प्राप्त होते और (प्रयाथः) एक देश से दूसरे देश पहुँचाते हो वे आप (सूरिभ्यः) विद्वानों के लिये धन को (धत्तम्) धारण करो (उत, वा) अथवा (स्वश्व्यम्) सुन्दर घोड़ा जिसमें विराजमान उत्तम धनादि विभव को प्राप्त होओ जिससे हम लोग (रयिषाचः) धन के साथ सम्बन्ध करनेवाले (स्याम) हों ॥ ९ ॥
Connotation: - मनुष्य जैसे अपने सुख के लिये जिन साधनों की इच्छा करें उन्हीं को औरों के आनन्द के लिये चाहें। जो सुपात्र पढ़ानेवालों को धनदान देते हैं, वे श्रीमान् धनवान् होते हैं ॥ ९ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे स्पन्द्रा नासत्या यत् युवां होता मनुषो न महिना रथस्य प्र वहेथे देशान्तरं प्रयाथस्तौ सूरिभ्यो धनं धत्तं उत वा स्वश्व्यं प्राप्नुतं यतो वयं रयिषाचः स्याम ॥ ९ ॥

Word-Meaning: - (प्र) (यत्) यो (वहेथे) (प्राप्नुथः) (महिना) महत्वेन सह (रथस्य) रमणीयस्य (प्र) (स्पन्द्रा) प्रचलितौ (याथः) गच्छथः (मनुषः) मानवान् (न) इव (होता) दाता (धत्तम्) धरतम् (सूरिभ्यः) विद्वद्भ्यः (उत) अपि (वा) (स्वश्व्यम्) शोभना अश्वा यस्मिंस्तम् (नासत्या) सत्यस्वभावौ (रयिषाचः) ये रयिणा सह समवयन्ति ते (स्याम) भवेम ॥ ९ ॥
Connotation: - मनुष्या यथा स्वसुखाय यानि साधनानीच्छेयुस्तान्येव परेषामानन्दायेच्छेयुः। ये सुपात्रेभ्योऽध्यापकेभ्यो दानं ददति ते श्रीमन्तो भवन्ति ॥ ९ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी आपल्या सुखासाठी ज्या साधनांची इच्छा धरावी तशीच इतरांच्या आनंदासाठी धरावी. जे सुपात्र अध्यापकांना धन देतात ते श्रीमान धनवान बनतात. ॥ ९ ॥