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यु॒वां चि॒द्धि ष्मा॑श्विना॒वनु॒ द्यून्विरु॑द्रस्य प्र॒स्रव॑णस्य सा॒तौ। अ॒गस्त्यो॑ न॒रां नृषु॒ प्रश॑स्त॒: कारा॑धुनीव चितयत्स॒हस्रै॑: ॥

English Transliteration

yuvāṁ cid dhi ṣmāśvināv anu dyūn virudrasya prasravaṇasya sātau | agastyo narāṁ nṛṣu praśastaḥ kārādhunīva citayat sahasraiḥ ||

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Pad Path

यु॒वाम्। चि॒त्। हि। स्म॒। अ॒श्वि॒नौ॒। अनु॑। द्यून्। विऽरु॑द्रस्य। प्र॒ऽस्रव॑णस्य। सा॒तौ। अ॒गस्त्यः॑। न॒राम्। नृषु॑। प्रऽश॑स्तः। कारा॑धुनीऽइव। चि॒त॒य॒त्। स॒हस्रैः॑ ॥ १.१८०.८

Rigveda » Mandal:1» Sukta:180» Mantra:8 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:24» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अश्विनौ) सूर्य और चन्द्रमा के तुल्य गुणवाले स्त्री-पुरुषो ! जैसे (युवां, चित्) तुम ही (हि, स्म) जिस कारण (विरुद्रस्य) विविध प्रकार से प्राण विद्यमान उस (प्रस्रवणस्य) उत्तमता से जानेवाले शरीर की (सातौ) संभक्ति में (अनु, द्यून्) प्रतिदिन अपने सन्तानों को उपदेश देओ वैसे उसी कारण (नराम्) मनुष्यों के बीच (नृषु) श्रेष्ठ मनुष्यों में (प्रशस्तः) उत्तम (अगस्त्यः) अपराध को दूर करनेवाला जन (सहस्रैः) हजारों प्रकार से (काराधुनीव) शब्दों को कंपाते हुए वादित्र आदि के समान सबको (चितयत्) उत्तम चितावे ॥ ८ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो स्त्रीपुरुष निरन्तर सूर्य और चन्द्रमा के समान सन्तानों की विद्या और उत्तम उपदेशों से प्रकाशित करते हैं, वे प्रशंसावान् होते हैं ॥ ८ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे अश्विनौ यथा युवां चिद्धि स्म विरुद्रस्य प्रस्रवणस्य सातवनुद्यून्निजापत्यानुपदिशेतं तथा नरां नृषु प्रशस्तोऽगस्त्यः सहस्रैः काराधुनीव सर्वाश्चितयत्संज्ञापयेत् ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (युवाम्) (चित्) (हि) यतः (स्म) (अश्विनौ) सूर्य्याचन्द्रमसाविव स्त्रीपुरुषौ (अनुद्यून्) प्रतिदिनम् (विरुद्रस्य) विविधा रुद्राः प्राणा यस्मिन् तस्य (प्रस्रवणस्य) प्रकर्षेण गतस्य (सातौ) संविभक्तौ (अगस्त्यः) अगमपराधमस्यन्ति प्रक्षिपन्ति तेषु साधुः (नराम्) मनुष्याणाम् (नृषु) मनुष्येषु (प्रशस्तः) उत्तमः (काराधुनीव) कारान् शब्दान् धूनयतीव (चितयत्) संज्ञापयेत् (सहस्रैः) ॥ ८ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। येऽनिशं सूर्याचन्द्रवत्सन्तानान् विद्योपदेशाभ्यां प्रकाशयन्ति ते प्रशंसिता भवन्ति ॥ ८ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जे स्त्री-पुरुष सतत सूर्यचंद्राप्रमाणे आपल्या संतानांना विद्या व उत्तम उपदेश देतात, ते प्रशंसनीय ठरतात. ॥ ८ ॥