Go To Mantra

नि यद्यु॒वेथे॑ नि॒युत॑: सुदानू॒ उप॑ स्व॒धाभि॑: सृजथ॒: पुरं॑धिम्। प्रेष॒द्वेष॒द्वातो॒ न सू॒रिरा म॒हे द॑दे सुव्र॒तो न वाज॑म् ॥

English Transliteration

ni yad yuvethe niyutaḥ sudānū upa svadhābhiḥ sṛjathaḥ puraṁdhim | preṣad veṣad vāto na sūrir ā mahe dade suvrato na vājam ||

Mantra Audio
Pad Path

नि। यत्। यु॒वेथे॒ इति॑। नि॒ऽयुतः॑। सु॒दा॒नू॒ इति॑ सुऽदानू। उप॑। स्व॒धाभिः॑। सृ॒ज॒थः॒। पुर॑म्ऽधिम्। प्रेष॑त्। वेष॑त्। वातः॑। न। सू॒रिः। आ। म॒हे। द॒दे॒। सु॒ऽव्र॒तः। न। वाज॑म् ॥ १.१८०.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:180» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:24» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:6


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सन्तानशिक्षापरक गार्हस्थ कर्म अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (यत्) जब हे (सुदानू) सुन्दर दानशील स्त्रीपुरुषो ! (नियुतः) पवन के वेगादि गुणों के समान निश्चित पदार्थों को (नियुवेथे) एक दूसरे से मिलाते हो तब (स्वधाभिः) अन्नादि पदार्थों से जिससे (पुरन्धिम्) प्राप्त होने योग्य विज्ञान को (उप, सृजथः) उत्पन्न करते हो वह (सूरिः) विद्वान् (प्रेषत्) प्रसन्न हो (वातः) पवन के (न) समान (वेषत्) सब ओर से गमन करे और (सुव्रतः) सुन्दर व्रत अर्थात् धर्म के अनुकूल नियमों से युक्त सज्जन पुरुष के (न) समान (महे) महत्त्व अर्थात् बड़प्पन के लिये (वाजम्) विशेष ज्ञान को (आददे) ग्रहण करता हूँ ॥ ६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। पितादिकों को चाहिये कि शिल्पक्रिया की कुशलता को पुत्रादिकों में उत्पन्न करावें, शिक्षा को प्राप्त हुए पुत्रादि समस्त पदार्थों को विशेषता से जानें और कलायन्त्रों से चलाये हुए पवन के समान जिससे वेग उस यान से जहाँ-तहाँ चाहे हुए स्थान को जावें ॥ ६ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सन्तानशिक्षापरं गार्हस्थ्यकर्म्माह ।

Anvay:

यद्यदा हे सुदानू स्त्रीपुरुषौ नियुतो नियुवेथे तदा स्वधाभिर्यस्य पुरन्धिमुपसृजथः स सूरिः प्रेषत् वातो न वेषत्। सुव्रतो न महे वाजमाददे ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (नि) (यत्) यदा (युवेथे) सङ्गमयथः (नियुतः) वायोर्वेगादिगुणानिव निश्चितान् पदार्थान् (सुदानू) सुष्ठुदानकर्त्तारौ (उप) (स्वधाभिः) अन्नादिभिः पदार्थैः (सृजथः) (पुरन्धिम्) प्राप्तव्यं विज्ञानम् (प्रेषत्) प्रीणीत। लेट्प्रयोगः तिपि। (वेषत्) अभिगच्छतु। तिपि लेट्प्रयोगः। (वातः) वायुः (न) इव (सूरिः) विद्वान् (आ) (महे) महते (ददे) (सुव्रतः) शोभनैर्व्रतैर्धर्म्यैर्नियमैर्युक्तः (न) इव (वाजम्) विज्ञानम् ॥ ६ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। पित्रादयः शिल्पक्रियाकौशलतां पुत्रेषु सम्पादयेयुः। शिक्षां प्राप्ताः पुत्रादयः सर्वपदार्थान् विजानीयुः कलायन्त्रैः चलितेन वायुवद्वेगेन यानेन यत्र कुत्राभीष्टप्रदेशं स्थाने गच्छेयुः ॥ ६ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. पिता इत्यादींनी शिल्पक्रियेची कुशलता पुत्रांमध्ये उत्पन्न करावी. शिक्षण प्राप्त केलेल्या पुत्र इत्यादींनी संपूर्ण पदार्थांची विशेषता जाणावी व कलायंत्रांनी चालविलेल्या वायूप्रमाणे वेगाने त्या यानाने इच्छित स्थानी जावे. ॥ ६ ॥