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तं वां॒ रथं॑ व॒यम॒द्या हु॑वेम॒ स्तोमै॑रश्विना सुवि॒ताय॒ नव्य॑म्। अरि॑ष्टनेमिं॒ परि॒ द्यामि॑या॒नं वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥

English Transliteration

taṁ vāṁ rathaṁ vayam adyā huvema stomair aśvinā suvitāya navyam | ariṣṭanemim pari dyām iyānaṁ vidyāmeṣaṁ vṛjanaṁ jīradānum ||

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Pad Path

तम्। वा॒म्। रथ॑म्। व॒यम्। अ॒द्य। हु॒वे॒म॒। स्तोमैः॑। अ॒श्वि॒ना॒। सु॒वि॒ताय॑। नव्य॑म्। अरि॑ष्टऽनेमिम्। परि॑। द्याम्। इ॒या॒नम्। वि॒द्याम॑। इ॒षम्। वृ॒जन॑म्। जी॒रऽदा॑नुम् ॥ १.१८०.१०

Rigveda » Mandal:1» Sukta:180» Mantra:10 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:24» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अश्विना) सर्वगुणव्यापी पुरुषो ! (वयम्) हम लोग (अद्य) आज (सुविताय) ऐश्वर्य्य के लिये (स्तोमैः) प्रशंसाओं से (अरिष्टनेमिम्) दुःखनिवारक (नव्यम्) नवीन (द्याम्) आकाश को (परि, इयानम्) सब ओर से जाते हुए (तम्) उस पूर्व मन्त्रोक्त (वाम्) तुम दोनों के (रथम्) रथ को (हुवेम्) स्वीकार करें तथा (इषम्) प्राप्तव्य सुख (वृजनम्) गमन और (जीरदानुम्) जीव को (विद्याम) प्राप्त होवें ॥ १० ॥
Connotation: - मनुष्यों को सदैव नवीन-नवीन विद्या के कार्य सिद्ध करने चाहियें जिससे इस संसार में प्रशंसा हो और आकाशादिकों में जाने से इच्छासिद्धि पाई जावे ॥ १० ॥इस सूक्त में स्त्री-पुरुषों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्तार्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥ यह १८० एकसौ अस्सीवाँ सूक्त और चौबीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे अश्विना वयमद्य सुविताय स्तोमैररिष्टनेमिं नव्यं द्यां परीयानं तं वां रथं हुवेमेषं वृजनं जीरदानुञ्च विद्याम ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (तम्) पूर्वमन्त्रप्रतिपादितम् (वाम्) युवयोः (रथम्) रमणीयं विमानादियानम् (वयम्) (अद्य) अस्मिन् दिने। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (हुवेम) स्वीकुर्याम (स्तोमैः) प्रशंसाभिः (अश्विना) हे सर्वगुणव्यापिनौ स्त्रीपुरुषौ (सुविताय) ऐश्वर्य्याय (नव्यम्) नवीनम् (अरिष्टनेमिम्) दुःखनिवारकम् (परि) सर्वतः (द्याम्) आकाशम् (इयानम्) गच्छन्तम् (विद्याम) विजानीयाम (इषम्) प्राप्तव्यं सुखम् (वृजनम्) गमनम् (जीरदानुम्) जीवम् ॥ १० ॥
Connotation: - मनुष्यैः सदैव नवीनानि नवीनानि विद्याकार्याणि साधनीयानि। येनाऽत्र प्रशंसा स्यादाकाशादिषु गमनेनेच्छासिद्धिश्च प्राप्येत् ॥ १० ॥अत्र स्त्रीपुरुषगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेदितव्यम् ॥इत्यशीत्युत्तरं शततमं सूक्तं चतुर्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी सदैव नवनवीन विद्या कार्य सिद्धीस नेले पाहिजे. ज्यामुळे जगात प्रशंसा व्हावी व आकाश इत्यादीमध्ये विहार करण्याची इच्छा पूर्ण व्हावी. ॥ १० ॥