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आदृ॑ध्नोति ह॒विष्कृ॑तिं॒ प्राञ्चं॑ कृणोत्यध्व॒रम्। होत्रा॑ दे॒वेषु॑ गच्छति॥

English Transliteration

ād ṛdhnoti haviṣkṛtim prāñcaṁ kṛṇoty adhvaram | hotrā deveṣu gacchati ||

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Pad Path

आत्। ऋ॒ध्नो॒ति॒। ह॒विःऽकृ॑तिम्। प्राञ्च॑म्। कृ॒णो॒ति॒। अ॒ध्व॒रम्। होत्रा॑। दे॒वेषु॑। ग॒च्छ॒ति॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:18» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:35» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह यज्ञ कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - जो उक्त सर्वज्ञ सभापति देव परमेश्वर (प्राञ्चम्) सब में व्याप्त और जिस को प्राणी अच्छी प्रकार प्राप्त होते हैं, (हविष्कृतिम्) होम करने योग्य पदार्थों का जिसमें व्यवहार और (अध्वरम्) क्रियाजन्य अर्थात् क्रिया से उत्पन्न होनेवाले जगद्रूप यज्ञ में (होत्राणि) होम से सिद्ध करानेवाली क्रियाओं को (कृणोति) उत्पन्न करता तथा (आदृध्नोति) अच्छी प्रकार बढ़ाता है, फिर वही यज्ञ (देवेषु) दिव्य गुणों में (गच्छति) प्राप्त होता है॥८॥
Connotation: - जिस कारण परमेश्वर सकल संसार को रचता है, इससे सब पदार्थ परस्पर अपने-अपने संयोग में बढ़ते और ये पदार्थ क्रियामययज्ञ और शिल्पविद्या में अच्छी प्रकार संयुक्त किये हुए बड़े-बड़े सुखों को उत्पन्न करते हैं॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः कीदृशः स यज्ञ इत्युच्यते।

Anvay:

सर्वज्ञः सदसस्पतिर्देवोऽयं प्राञ्चं हविष्कृतिमध्वरं होत्राणि हवनानि कृणोत्यादृध्नोति स पुनर्देवेषु दिव्यगुणेषु गच्छति॥८॥

Word-Meaning: - (आत्) समन्तात् (ऋध्नोति) वर्धयति (हविष्कृतिम्) हविषां कृतिः करणं यस्य तम्। अत्र सह सुपा इति समासः। (प्राञ्चम्) यः प्रकृष्टमञ्चति प्राप्नोति तम् (कृणोति) करोति (अध्वरम्) क्रियाजन्यं जगत् (होत्रा) जुह्वति येषु यानि तानि। अत्र शेश्छन्दसि बहुलम् इति लोपः। हुयामाश्रु० (उणा०४.१६८) अनेन ‘हु’धातोस्त्रन् प्रत्ययः। (देवेषु) दिव्यगुणेषु (गच्छति) प्राप्नोति॥८॥
Connotation: - यतः परमेश्वरः सकलं जगद्रचयति तस्मात्सर्वे पदार्थाः परस्परं योजनेन वर्धन्त एते क्रियामये शिल्पविद्यायां च सम्यक् प्रयोजिता महान्ति सुखानि जनयन्तीति॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ज्या कारणाने परमेश्वर संपूर्ण जग निर्माण करतो त्यामुळे सर्व पदार्थ परस्पर संयोगाने वाढतात. ते पदार्थ क्रियामय यज्ञ व शिल्पविद्येने चांगल्या प्रकारे संयुक्त केलेले असल्यामुळे महान सुख उत्पन्न करतात. ॥ ८ ॥