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अ॒गस्त्य॒: खन॑मानः ख॒नित्रै॑: प्र॒जामप॑त्यं॒ बल॑मि॒च्छमा॑नः। उ॒भौ वर्णा॒वृषि॑रु॒ग्रः पु॑पोष स॒त्या दे॒वेष्वा॒शिषो॑ जगाम ॥

English Transliteration

agastyaḥ khanamānaḥ khanitraiḥ prajām apatyam balam icchamānaḥ | ubhau varṇāv ṛṣir ugraḥ pupoṣa satyā deveṣv āśiṣo jagāma ||

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Pad Path

अ॒गस्त्यः॑। खन॑मानः। ख॒नित्रैः॑। प्र॒ऽजाम्। अप॑त्यम्। बल॑म्। इ॒च्छमा॑नः। उ॒भौ। वर्णौ॑। ऋषिः॑। उ॒ग्रः। पु॒पो॒ष॒। स॒त्याः। दे॒वेषु। आ॒ऽशिषः॑। ज॒गा॒म॒ ॥ १.१७९.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:179» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:22» Mantra:6 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सन्तानोत्पत्तिविषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जैसे (खनित्रैः) कुद्दाल, फाँवड़ा, कसी आदि खोदने के साधनों से भूमि को (खनमानः) खोदता हुआ खेती करनेवाला धान्य आदि अनाज पाके सुखी होता है वैसे ब्रह्मचर्य और विद्या से (प्रजाम्) राज्य (अपत्यम्) सन्तान और (बलम्) बल की (इच्छमानः) इच्छा करता हुआ (अगस्त्यः) निरपराधियों में उत्तम (ऋषिः) वेदार्थवेत्ता (उग्रः) तेजस्वी विद्वान् (पुपोष) पुष्ट होता है (देवेषु) और विद्वानों में वा कामों में (सत्याः) अच्छे कर्मों में उत्तम सत्य और (आशिषः) सिद्ध इच्छाओं को (जगाम) प्राप्त होता है वैसे (उभौ) दोनों (वर्णौ) परस्पर एक दूसरे का स्वीकार करते हुए स्त्री-पुरुष होवें ॥ ६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे कृषि करनेवाले अच्छे खेतों में उत्तम बीजों को बोय कर फलवान् होते हैं और जैसे धार्मिक विद्वान् जन सत्य कामों को प्राप्त होते हैं वैसे ब्रह्मचर्य से युवावस्था को प्राप्त होकर अपनी इच्छा से विवाह करें वे अच्छे खेत में उत्तम बीज सम्बन्धी के समान फलवान् होते हैं ॥ ६ ॥इस सूक्त में विदुषी स्त्री और विद्वान् पुरुषों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥यह एकसौ उनासीवाँ सूक्त बाईसवाँ वर्ग और तेईसवाँ अनुवाक समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सन्तानोत्पत्तिविषयमाह ।

Anvay:

यथा खनित्रैर्भूमिं खनमानः कृषीवलो धान्यादिकं प्राप्य सुखी जायते तथा ब्रह्मचर्येण विद्यया प्रजामपत्यं बलमिच्छमानोऽगस्त्यः ऋषिरुग्रो विद्वान् पुपोष देवेषु सत्या आशिषो जगाम तथोभौ वर्णौ स्त्रीपुरुषौ भवेताम् ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (अगस्त्यः) ये धर्मादन्यत्र न गच्छन्ति तेऽगस्तयस्तेषु साधुः (खनमानः) खनमानो भूमिमवदारयन् (खनित्रैः) खननसाधनैः (प्रजाम्) राज्यम् (अपत्यम्) सन्तानम् (बलम्) (इच्छमानः) (उभौ) (वर्णौ) परस्परेण व्रियमाणौ सुन्दरस्वरूपौ (ऋषिः) वेदार्थवेत्ता (उग्रः) तेजस्वी (पुपोष) पुष्णाति (सत्याः) सत्सु कर्मसु साधवः (देवेषु) विद्वत्सु कामेषु वा (आशिषः) सिद्धा इच्छाः (जगाम) गच्छति ॥ ६ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा कृषीवलाः सुक्षेत्रेषु सुबीजानि उप्त्वा फलवन्तो जायन्ते। यथा च धार्मिका विद्वांसो सत्यान् कामान् प्राप्नुवन्ति तथा ब्रह्मचर्य्येण यौवनं प्राप्य स्वेच्छया विवाहं कुर्युस्ते सुक्षेत्रोत्तमबीजसम्बन्धवत्फलवन्तो भवन्ति ॥ ६ ॥अत्र विद्वत्स्त्रीपुरुषगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेदितव्यम् ॥इत्येकोनाशीत्युत्तरं शततमं सूक्तं द्वाविंशो वर्गस्त्रयोविंशोऽनुवाकश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. असे शेतकरी शेतात उत्तम बीज पेरून धान्य प्राप्त करतात व जसे धार्मिक विद्वान सत्य कर्म करतात तसेच स्त्री-पुरुषांनी ब्रह्मचर्याने युवावस्था प्राप्त करून आपल्या इच्छेने विवाह केल्यास चांगल्या शेतात उत्तम बीज प्राप्त झाल्याप्रमाणे फलीभूत होतात. ॥ ६ ॥