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त्वया॑ व॒यं म॑घवन्निन्द्र॒ शत्रू॑न॒भि ष्या॑म मह॒तो मन्य॑मानान्। त्वं त्रा॒ता त्वमु॑ नो वृ॒धे भू॑र्वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥

English Transliteration

tvayā vayam maghavann indra śatrūn abhi ṣyāma mahato manyamānān | tvaṁ trātā tvam u no vṛdhe bhūr vidyāmeṣaṁ vṛjanaṁ jīradānum ||

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Pad Path

त्वया॑। व॒यम्। म॒घ॒ऽव॒न्। इ॒न्द्र॒। शत्रू॑न्। अ॒भि। स्या॒म॒। म॒ह॒तः। मन्य॑मानान्। त्वम्। त्रा॒ता। त्वम्। ऊँ॒ इति॑। नः॒। वृ॒धे। भूः॒। वि॒द्याम॑। इ॒षम्। वृ॒जन॑म्। जी॒रऽदा॑नुम् ॥ १.१७८.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:178» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:21» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (मघवन्) परम प्रशंसित धनयुक्त (इन्द्र) शत्रुओं को विदीर्ण करनेवाले ! (त्वया) आपके साथ वर्त्तमान (वयम्) हम लोग (महतः) प्रबल (मन्यमानान्) अभिमानी (शत्रून्) शत्रुओं को जीतनेवाले (अभि, स्याम) सब ओर से होवें (त्वम्) आप (नः) हमारे (त्राता) रक्षक सहायक और (त्वम्, उ) आप तो ही (वृधे) वृद्धि के लिये (भूः) हो जिससे हम लोग (इषम्) प्रत्येक काम की प्रेरणा (वृजनम्) बल और (जीरदानुम्) जीव-स्वभाव को (विद्याम) पावें ॥ ५ ॥
Connotation: - जो युद्ध करनेवाले भृत्यों का सर्वथा सत्कार कर और उनको उत्साह दे युद्ध करते हैं, युद्ध करते हुओं की निरन्तर रक्षा और मरे हुओं के पुत्र, कन्या और स्त्रियों की पालना करें वे सब सर्वत्र विजय करनेवाले हों ॥ ५ ॥इस सूक्त में सेनापति के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥यह एकसौ अठहत्तरवाँ सूक्त और इक्कीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मघवन्निन्द्र त्वया सह वर्त्तमाना वयं महतो मन्यमानाञ्छत्रून् विजयमाना अभि स्याम। त्वं नस्त्राता त्वमु वृधे भूर्यतो वयमिषं वृजनं जीरदानुञ्च विद्याम ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (त्वया) (वयम्) (मघवन्) परमपूजितधनयुक्त (इन्द्र) शत्रुविदारक (शत्रून्) (अभि) आभिमुख्ये (स्याम) भवेम (महतः) प्रबलान् (मन्यमानान्) अभिमानिनः (त्वम्) (त्राता) (त्वम्) (उ) वितर्के (नः) अस्माकम् (वृधे) (भूः) भवेः (विद्याम) (इषम्) प्रेरणम् (वृजनम्) बलम् (जीरदानुम्) जीवस्वभावम् ॥ ५ ॥
Connotation: - ये युद्धाऽधिकारिणो भृत्यान् सर्वथा सत्कृत्योत्साह्य योधयन्ति युद्धमानानां सततं रक्षणं मृतानां पुत्रकलत्राणां च पालनं कुर्युस्ते सर्वत्र विजयितारः स्युरिति ॥ ५ ॥अत्र सेनापतिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेदितव्यम् ॥इति अष्टसप्तत्युत्तरं शततमं सूक्तमेकविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - युद्ध करणाऱ्या सैनिकांचा सत्कार करून त्यांच्यात उत्साह निर्माण करून जे युद्ध करतात, युद्ध करणाऱ्यांचे निरंतर रक्षण करतात व मृत व्यक्तींच्या पुत्र व कन्या तसेच स्त्रियांचे पालन करतात त्यांचा सर्वत्र विजय होतो. ॥ ५ ॥