Go To Mantra

अ॒यं य॒ज्ञो दे॑व॒या अ॒यं मि॒येध॑ इ॒मा ब्रह्मा॑ण्य॒यमि॑न्द्र॒ सोम॑:। स्ती॒र्णं ब॒र्हिरा तु श॑क्र॒ प्र या॑हि॒ पिबा॑ नि॒षद्य॒ वि मु॑चा॒ हरी॑ इ॒ह ॥

English Transliteration

ayaṁ yajño devayā ayam miyedha imā brahmāṇy ayam indra somaḥ | stīrṇam barhir ā tu śakra pra yāhi pibā niṣadya vi mucā harī iha ||

Mantra Audio
Pad Path

अ॒यम्। य॒ज्ञः। दे॒व॒ऽयाः। अ॒यम्। मि॒येधः॑। इ॒मा। ब्रह्मा॑णि। अ॒यम्। इ॒न्द्र॒। सोमः॑। स्ती॒र्णम्। ब॒र्हिः। आ। तु। श॒क्र॒। प्र। या॒हि॒। पिब॑। नि॒ऽसद्य॑। वि। मु॒च॒। हरी॒ इति॑। इ॒ह ॥ १.१७७.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:177» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:20» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:4


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजा और विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (शक्र) शक्तिमान् (इन्द्र) सभापति ! (अयम्) यह (देवयाः) जिससे दिव्य गुण वा उत्तम विद्वानों को प्राप्त होना होता वह (यज्ञः) राजधर्म और शिल्प की सङ्गति से उन्नति को प्राप्त हुआ यज्ञ वा (अयम्) यह (मियेधः) जिसकी पदार्थों के डारने से वृद्धि होती वह (अयम्) यह (सोमः) बड़ी बड़ी ओषधियों का रस वा ऐश्वर्य (तु) और यह (स्तीर्णम्) ढंपा हुआ (बर्हिः) उत्तम आसन है (निसद्य) इस आसन पर बैठ (इमा) इन (ब्रह्माणि) धनों को (प्रायाहि) उत्तमता से प्राप्त होओ। इस उक्त ओषधि को (पिब) पी, (इह) यहाँ (हरी) बिजुली के धारण और आकर्षणरूपी घोड़ों को स्वीकार कर और दुःख को (विमुच) छोड़ ॥ ४ ॥
Connotation: - सब मनुष्यों को व्यवहार में अच्छा यत्न कर जब राजा, ब्रह्मचारी तथा विद्या और अवस्था से बढ़ा हुआ सज्जन आवे तब आसन आदि से उसका सत्कार कर पूछना चाहिए। वह उनके प्रति यथोचित धर्म के अनुकूल विद्या की प्राप्ति करनेवाले वचन को कहे जिससे दुःख की हानि सुख की वृद्धि और बिजुली आदि पदार्थों की भी सिद्धि हो ॥ ४ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजविद्वद्विषयमाह ।

Anvay:

हे शक्रेन्द्र अयं देवया यज्ञोऽयं मियेधोऽयं सोमस्त्विदं स्तीर्णं बर्हिर्निसद्येमा ब्रह्माणि प्रायाहि। इं सोमं पिब इह हरी स्वीकृत्य दुःखं विमुच ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (अयम्) (यज्ञः) राजधर्मशिल्पकार्य्यसङ्गत्युन्नतः (देवयाः) देवान् दिव्यान् गुणान् विदुषो वा याति प्राप्नोति येन सः (अयम्) (मियेधः) मियेन प्रक्षेपणेनैधः प्रदीपनं यस्य सः (इमा) इमानि (ब्रह्माणि) धनानि। ब्रह्मेति धनना०। निघं० २। १०। (अयम्) (इन्द्र) सभेश (सोमः) महौषधिरस ऐश्वर्य्यं वा (स्तीर्णम्) आच्छादितम् (बर्हिः) उत्तमासनम् (आ) (तु) (शक्र) शक्तिमान् (प्र) (याहि) प्राप्नुहि (पिब)। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (निसद्य) उपविश्य (वि) (मुच) त्यज। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। वा छन्दसीति उपधानकारलोपः। (हरी) विद्युतो धारणाकर्षणावश्वौ। हरि इतीन्द्रस्येत्यादिष्टोपयोजनना०। निघं० १। १५। (इह) अस्मिन् जगति ॥ ४ ॥
Connotation: - सर्वैर्जनैर्व्यवहारे प्रयत्य यदा राजा स्नातको विद्यावयोवृद्धश्चागच्छेत्तदाऽऽसनादिभिः सत्कृत्य प्रष्टव्यः, स तान् प्रति यथोचितं धर्म्यं विद्याप्रापकं वचो ब्रूयाद्यतो दुःखहानिसिद्धिर्विद्युदादिपदार्थसिद्धिश्च स्यात् ॥ ४ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - सर्व माणसांनी प्रयत्नपूर्वक चांगला व्यवहार ठेवला पाहिजे. जेव्हा राजा, ब्रह्मचारी व वयोवृद्ध सज्जन येतील तेव्हा आसन इत्यादींनी त्यांचा सत्कार केला पाहिजे. त्यांच्याशी यथोचित धर्मानुकूल विद्येची प्राप्ती होईल अशी वाणी वापरावी. ज्यामुळे दुःखाची हानी, सुखाची वृद्धी व विद्युत इत्यादी पदार्थांची सिद्धी व्हावी. ॥ ४ ॥