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मु॒षा॒य सूर्यं॑ कवे च॒क्रमीशा॑न॒ ओज॑सा। वह॒ शुष्णा॑य व॒धं कुत्सं॒ वात॒स्याश्वै॑: ॥

English Transliteration

muṣāya sūryaṁ kave cakram īśāna ojasā | vaha śuṣṇāya vadhaṁ kutsaṁ vātasyāśvaiḥ ||

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Pad Path

मु॒षा॒य। सू॒र्य॒म्। क॒वे॒। च॒क्रम्। ईशा॑नः। ओज॑सा। वह॑। शुष्णा॑य। व॒धम्। कुत्स॑म्। वात॑स्य। अश्वैः॑ ॥ १.१७५.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:175» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:18» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजधर्म विषय में सभापति के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (कवे) क्रम क्रम से दृष्टि देने समस्त विद्याओं के जाननेवाले सभापति ! (ईशानः) ऐश्वर्य्यवान् समर्थ ! आप (सूर्य्यम्) सूर्यमण्डल के समान (ओजसा) बल से युक्त (चक्रम्) भूगोल के राज्य को (मुषाय) हर के (शुष्णाय) औरों के हृदय को सुखानेवाले दुष्ट के लिये (वातस्य) पवन के (अश्वैः) वेगादि गुणों के समान अपने बलों से (कुत्सम्) वज्र को घुमाके (वधम्) वध को (वह) पहुँचाओ अर्थात् उक्त दुष्ट को मारो ॥ ४ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो चक्रवर्त्ती राज्य करने की इच्छा करें वे डाकू और दुष्टाचारी मनुष्यों को निवार के न्याय को प्रवृत्त करावें ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजधर्मविषये सभापतिविषयमाह ।

Anvay:

हे कवे ईशानस्त्वं सूर्यमिवौजसा चक्रं मुषाय शुष्णाय वातस्याऽश्वैरिव स्वबलैः कुत्सं परिवर्त्य वधं वह प्रापय ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (मुषाय) (सूर्यम्) (कवे) क्रान्तदर्शन सकलविद्याविद्वन् (चक्रम्) भूगोलराज्यम् (ईशानः) ऐश्वर्यवान् समर्थः (ओजसा) बलेन (वह) प्रापय (शुष्णाय) परेषां हृदयस्य शोषकाय (वधम्) (कुत्सम्) वज्रम् (वातस्य) वायोः (अश्वैः) वेगादिभिर्गुणैः ॥ ४ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये चक्रवर्त्तिराज्यं कर्त्तुमिच्छेयुस्ते दस्यून् दुष्टाचारान् मनुष्यान्निवर्त्य न्यायं प्रवर्त्तयेयुः ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

N/A

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो चक्रवर्ती राज्य करण्याची इच्छा धरतो त्यांनी चोर लुटारूंचे व दुष्ट माणसांचे निवारण करून न्यायात संलग्न व्हावे. ॥ ४ ॥