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असा॑म॒ यथा॑ सुष॒खाय॑ एन स्वभि॒ष्टयो॑ न॒रां न शंसै॑:। अस॒द्यथा॑ न॒ इन्द्रो॑ वन्दने॒ष्ठास्तु॒रो न कर्म॒ नय॑मान उ॒क्था ॥

English Transliteration

asāma yathā suṣakhāya ena svabhiṣṭayo narāṁ na śaṁsaiḥ | asad yathā na indro vandaneṣṭhās turo na karma nayamāna ukthā ||

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Pad Path

असा॑म। यथा॑। सु॒ऽस॒खायः॑। ए॒न॒। सु॒ऽअ॒भि॒ष्टयः॑। न॒राम्। न। शंसैः॑। अस॑त्। यथा॑। नः॒। इन्द्रः॑। व॒न्द॒ने॒ऽस्थाः। तु॒रः। न। कर्म॑। नय॑मानः। उ॒क्था ॥ १.१७३.९

Rigveda » Mandal:1» Sukta:173» Mantra:9 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:14» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब मित्रपरत्व से विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (एन) पुरुषार्थ से सुखों को प्राप्त होते हुए विद्वान् ! (यथा) जैसे (स्वभिष्टयः) सुन्दर अभिप्राय और (सुसखायः) उत्तम मित्र जिनके वे हम लोग (नराम्) अग्रगामी प्रशंसित पुरुषों की (शंसैः) प्रशंसाओं के (न) समान उत्तम गुणों से आपको प्राप्त (असाम) होवें वा (यथा) जैसे (वन्दनेष्ठाः) स्तुति में स्थिर होता हुआ (तुरः) शीघ्रकारी (इन्द्रः) परमैश्वर्ययुक्त मित्र (कर्म) धर्म युक्त कर्म के (न) समान (नः) हमारे (उक्था) प्रशंसा युक्त विज्ञानों को (नयमानः) प्राप्त करता वा कराता हुआ (असत्) हो वैसा आचरण हम लोग करें ॥ ९ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो सब प्राणियों में मित्रभाव से वर्त्तमान हैं, वे सबको अभिवादन करने योग्य हों, जो सबको उत्तम बोध को प्राप्त कराते हैं, वे अतीव उत्तम विद्यावाले होते हैं ॥ ९ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मित्रपरत्वेन विद्वद्विषयमाह ।

Anvay:

हे एन विद्वन् यथा स्वभिष्टयः सुसखायो वयं नरां शंसैर्नोत्तमगुणैस्त्वां प्राप्ता असाम यथा वा वन्दनेष्ठाः तुर इन्द्रः कर्म नेव नोऽस्माकमुक्था नयमानोऽसत् तथा वयमाचरेम ॥ ९ ॥

Word-Meaning: - (असाम) भवेम (यथा) (सुसखायः) शोभनाः सखायो येषान्ते (एन) एति पुरुषार्थेन सुखानि यस्तत्सम्बुद्धौ (स्वभिष्टयः) शोभना अभिष्टयोऽभिप्राया येषान्ते (नराम्) नायकानाम् (न) इव (शंसैः) प्रशंसाभिः (असत्) भवेत् (यथा) (नः) अस्मान् (इन्द्रः) परमैश्वर्ययुक्तो मित्रः (वन्दनेष्ठाः) स्तवने तिष्ठति यः (तुरः) शीघ्रकारी (न) इव (कर्म) धर्म्यं कृत्यम् (नयमानः) प्राप्नुवन् प्रापयन् वा (उक्था) प्रशस्तानि विज्ञानानि ॥ ९ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। ये सर्वेषु प्राणिषु सुहृद्भावेन वर्त्तन्ते ते सर्वैरभिवन्दनीयाः स्युः। ये सर्वान् सुबोधन्नयन्ति ते अत्युत्तमविद्या भवन्ति ॥ ९ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे सर्व प्राणिमात्राला मित्रभावाने पाहतात ते अभिनंदनीय असतात. जे सर्वांना उत्तम बोध करवितात ते अत्यंत विद्यावान असतात. ॥ ९ ॥