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तमु॑ ष्टु॒हीन्द्रं॒ यो ह॒ सत्वा॒ यः शूरो॑ म॒घवा॒ यो र॑थे॒ष्ठाः। प्र॒ती॒चश्चि॒द्योधी॑या॒न्वृष॑ण्वान्वव॒व्रुष॑श्चि॒त्तम॑सो विह॒न्ता ॥

English Transliteration

tam u ṣṭuhīndraṁ yo ha satvā yaḥ śūro maghavā yo ratheṣṭhāḥ | pratīcaś cid yodhīyān vṛṣaṇvān vavavruṣaś cit tamaso vihantā ||

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Pad Path

तम्। उँ॒म् इति॑। स्तु॒हि॒। इन्द्र॑म्। यः। ह॒। सत्वा॑। यः। शूरः॑। म॒घवा॑। यः। र॒थे॒ऽस्थाः। प्र॒ती॒चः। चि॒त्। योधी॑यान्। वृष॑ण्ऽवान्। व॒व॒व्रुषः॑। चि॒त्। तम॑सः। वि॒ऽह॒न्ता ॥ १.१७३.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:173» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:13» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब भले-बुरे के विवेक करने पर जो विद्वानों का विषय उसका अगले मन्त्र में उपदेश किया है ।

Word-Meaning: - हे विद्वान् ! आप (यः) जो (सत्वा) बलवान् (यः, चित्) और जो (शूरः) शूर (मघवा) परमपूजित धनयुक्त (यः, चित्) और जो (रथेष्ठाः) रथ में स्थित होनेवाला (योधीयान्) अत्यन्त युद्धशील (वृषण्वान्) बलवान् (प्रतीचः) प्रति पदार्थ प्राप्त होनेवाले (ववव्रुषः) रूपयुक्त (तमसः) अन्धकार का (विहन्ता) विनाश करनेवाले सूर्य के समान हैं (तम्, उ, ह) उसी (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवान् सेनापति की (स्तुहि) प्रशंसा करो ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि उसीकी स्तुति करें जो प्रशंसित कर्म करे और उसीकी निन्दा करें जो निन्दित कर्मों का आचरण करे। वही स्तुति है जो सत्य कहना और वहीं निन्दा है जो किसी के विषय में झूठ बकना है ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सदसद्विवेचनपरं विद्वद्विषयमाह ।

Anvay:

हे विद्वँस्त्वं यः सत्वा यश्चिच्छूरो मघवा यश्चिद्रथेष्ठा योधीयान् वृषण्वान् प्रतीचो ववव्रुषस्तमसो विहन्ता सूर्यइवाऽस्ति तमु हेन्द्र स्तुहि ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (तम्) (उ) वितर्के (स्तुहि) प्रशंस (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं सेनेशम् (वः) (ह) किल (सत्वा) बलिष्ठः (यः) (शूरः) निर्भयः (मघवा) परमपूजितधनयुक्तः (यः) (रथेष्ठाः) रथे तिष्ठति (प्रतीचः) यत् प्रत्यगञ्चति तस्य (चित्) अपि (योधीयान्) अतिशयेन योद्धा (वृषण्वान्) बलवान् (ववव्रुषः) रूपवतः। अत्र वव्रिरिति रूपनाम धातोर्लिटः क्वसुः। (चित्) अपि (तमसः) अन्धकारस्य (विहन्ता) विशेषेण नाशकः ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैस्तस्यैव स्तुतिः कार्या यः प्रशंसितानि कर्माणि कुर्यात्। तस्यैव निन्दा कार्या यो निन्द्यानि कर्माण्याचरेत् सैव स्तुतिर्यत्सत्यभाषणं सैव निन्दा यन्मिथ्याप्रलपनम् ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी त्यांचीच स्तुती करावी जे प्रशंसित कार्य करतात व त्याचीच निंदा करावी जे निन्दित कर्माचे आचरण करतात, कुणाविषयी सत्य सांगणे हीच स्तुती व खोटे सांगणे ही निंदा होय. ॥ ५ ॥