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अरं॑ कृण्वन्तु॒ वेदिं॒ सम॒ग्निमि॑न्धतां पु॒रः। तत्रा॒मृत॑स्य॒ चेत॑नं य॒ज्ञं ते॑ तनवावहै ॥

English Transliteration

araṁ kṛṇvantu vediṁ sam agnim indhatām puraḥ | tatrāmṛtasya cetanaṁ yajñaṁ te tanavāvahai ||

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Pad Path

अर॑म्। कृ॒ण्व॒न्तु॒। वेदि॑म्। सम्। अ॒ग्निम्। इ॒न्ध॒ता॒म्। पु॒रः। तत्र॑। अ॒मृत॑स्य। चेत॑नम्। य॒ज्ञम्। ते॒। त॒न॒वा॒व॒है॒ ॥ १.१७०.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:170» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:10» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे मित्र ! जैसे विद्वान् जन जहाँ (पुरः) प्रथम (वेदिम्) जिससे प्राणी विषयों को जानता है उस प्रज्ञा और (अग्निम्) अग्नि के समान देदीप्यमान विज्ञान को (समिन्धताम्) प्रदीप्त करें वा (अरम्, कृण्वन्तु) सुशोभित करें (तत्र) वहाँ (अमृतस्य) विनाश रहित जीवमात्र (ते) आपके (चेतनम्) चेतन अर्थात् जिससे अच्छे प्रकार यह जीव जानता और (यज्ञम्) विषयों को प्राप्त होता उसको वैसे हम पढ़ाने और उपदेश करनेवाले (तनवावहै) विस्तारें ॥ ४ ॥
Connotation: - जैसे ऋतु-ऋतु में यज्ञ करानेवाले और यजमान अग्नि में सुगन्धादि द्रव्य का हवन कर उससे वायु और जल को अच्छे प्रकार शोध कर जगत् को सुख से युक्त करते हैं, वैसे अध्यापक और उपदेशक औरों के अन्तःकरणों में विद्या और उत्तम शिक्षा संस्थापन कर सबके सुख का विस्तार करें ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे सखे यथा विद्वांसो यत्र पुरो वेदिमग्निं च समिन्धतामरं कृण्वन्तु तत्राऽमृतस्य ते चेतनं यज्ञं तथाऽऽवामध्यापकोपदेशकौ तनवावहै ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (अरम्) अलम् (कृण्वन्तु) कुर्वन्तु (वेदिम्) वेत्ति यया तां प्रज्ञाम् (सम्) (अग्निम्) पावकमिव विज्ञानम् (इन्धताम्) दीप्यन्तु (पुरः) प्रथमम् (तत्र) वेद्याम् (अमृतस्य) अविनाशिनो जीवस्य (चेतनम्) चेतति येन तम् (यज्ञम्) यजति संगच्छति येन तम् (ते) तव (तनवावहै) विस्तृणावहै ॥ ४ ॥
Connotation: - यथा ऋत्विग्यजमाना वह्नौ सुगन्ध्यादि द्रव्यं हुत्वा वायुजले संशोध्य सुखेन सहितं जगत् कुर्वन्ति तथाऽध्यापकोपदेशकावन्येषामन्तःकरणेषु विद्यासुशिक्षे संस्थाप्य सर्वेषां सुखं विस्तारयताम् ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसे ऋत्विज व यजमान अग्नीत सुगंधी द्रव्याचे हवन करून वायू व जल चांगल्या प्रकारे संस्कारित करून जगाला सुखी करतात. तसे अध्यापक व उपदेशकांनी इतरांच्या अंतःकरणात विद्या व उत्तम शिक्षण संस्थापित करून सर्वांच्या सुखाचा विस्तार करावा. ॥ ४ ॥